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________________ सिद्ध-सारस्वत शुभाशीष “विद्वान् सर्वत्र पूज्यते" विद्वानों का सभी जगह आदर होता है। यह भारतीय संस्कृति है। पण्डित सुदर्शन लाल जी तो वैसे ही सरस्वती के गर्भ से उत्पन्न हुये हैं फिर उनके रक्त में उस माँ सरस्वती के संरक्षण का भाव क्यों नहीं होगा, अवश्य ही होगा। उन्होंने अपने ज्ञान के क्षयोपशम का सही उपयोग कर विद्वानों को एक नयी दिशा प्रदान की है। अनेक ग्रन्थों का सम्पादन एवं लेखन करने वाले पण्डित जी के लिए इस अवसर पर भावना भाता हूँ कि वे अपने ज्ञान को प्रयोग में ढालकर शाश्वत सिद्ध स्वरूप की प्राप्ति करें। इस कार्य में जो भी सहयोग कर रहें हों उनको भी शुभाशीष। प.पू. मुनि श्री 108 सन्धान सागर जी महाराज मङ्गल आशीर्वाद बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य प. पू. श्री 108 शान्ति सागर जी महाराज जी ने जिनशासन की मुरझाई ज्ञानलता को पुन: पल्लवित किया था। उसी के प्रभाव से आज त्यागीवर्ग तथा विद्वद् वर्ग जिनशासन के रथ को आगे बढ़ा रहे हैं। सिद्ध सारस्वत प्रो. सुदर्शन लाल जैन उनमें से एक धुरी हैं। आप स्पष्टवादी एवं सरल प्रकृति के विद्वान् हैं। आप कई बार जम्बूद्वीप हस्तिनापुर दर्शनार्थ तथा संगोष्ठियों में आए हैं। मांगीतुङ्गी तीर्थक्षेत्र पर भी दर्शनार्थ पधारे थे। आपको तत्त्व-चर्चा में आनन्द आता है। आप पूर्वाचार्यों की आगमोक्त वाणी का प्रचार-प्रसार करते हुए सिद्ध-सारस्वत इस नाम को सार्थक करें तथा सुदर्शन से सम्यग्दर्शनधारी बनें। यही मेरा मंगल आशीर्वाद है। प.पू. श्री 105 आर्यिका गणनी प्रमुख ज्ञानमति माता जी एवं प.पू. श्री 105 आर्यिका चन्दनामति माता जी
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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