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________________ वालों के हैं और सात त्रैराशिक मतानुसारी हैं। इस प्रकार ये सातों परिकर्म पूर्वापर भेदों की अपेक्षा 83 (14 + 14+ 11 + 11 + 11 + 11 + 11) होते हैं। (आ) सूत्र-ये 88 होते हैं। जैसे-ऋजुक, परिणतापरिणत, बहुभङ्गिक, विजयचर्या, अनन्तर, परम्पर, समान, सन्जूह (संयूथ), सम्भिन्न, अहाच्चय, सौवस्तिक, नन्द्यावर्त, बहुल, पृष्टापृष्ट, व्यावृत्त, एवम्भूत, द्वयावर्त, वर्तमानात्मक, समभिरूढ, सर्वतोभद्र, पणास (पण्णास) और दुष्प्रतिग्रह। ये 22 सूत्र स्वसमयसूत्रपरिपाटी में छिन्नच्छेदनयिक हैं। ये ही 22 सूत्र आजीविका सूत्र परिपाटी से अच्छिन्नच्छेदनयिक हैं। ये ही 22 सूत्र त्रैराशिक सूत्र परिपाटी से त्रिकनयिक हैं और ये ही 22 सूत्र स्वसमय सूत्र परिपाटी से चतुष्कनयिक हैं। इस तरह कुल मिलाकर 22 x 4= 88 भेद सूत्र के हैं। (इ) पूर्वगत-इसके 14 प्रकार हैं-1. उत्पादपूर्व, 2. अग्रायणीयपूर्व, 3. वीर्यप्रवादपूर्व, 4. अस्तिनास्तिपूर्व, 5. ज्ञानप्रवादपूर्व, 6. सत्यप्रवादपूर्व,, 7. आत्मप्रवादपूर्व, 8. कर्मप्रवादपूर्व, 9. प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व, 10. विद्यानुप्रवादपूर्व, 11. अबन्ध्यपूर्व, 12. प्राणायुपूर्व, 13. क्रियाविशालपूर्व और 14. लोकबिन्दुसारपूर्व। पूर्वो की वस्तुएँ और चूलिकायें निम्न प्रकार हैं श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परानुसार पूर्वक्रमाङ्क श्वे.वस्तु दिग. वस्तु श्वे.चूलिका दिग.चूलिका 00000000000000 (ई) अनुयोग - यह दो प्रकार का है-(क) मूलप्रथमानुयोग-इसमें अर्हतों के पूर्वभव, देवलोक गमन, देवायु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिविका, प्रव्रज्या, तप, भक्त (आहार) केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण, तीर्थप्रवर्तन, संहनन, संस्थान शरीरउच्चता, आयु, शिष्यगण, गणधर, आर्या, प्रवर्तनी, चतुर्विध सङ्घ-परिमाण, केवलिजिन, मन:पर्यायज्ञानी, अवधिज्ञानी, सम्यक्श्रुतवादी, अनुत्तरविमानों में उत्पन्न होने वाले साधू, सिद्ध, पादपोपगत, जो जहाँ जितने भक्तों का छेदनकर उत्तम मुनिवर अन्तकृत हुए, तमोरज से विप्रमुक्त हुए, अनुत्तरसिद्धिपथ को प्राप्त हुए, इन महापुरुषों का तथा इसी प्रकार के अन्य भाव मूल-प्रथमानुयोग में कहे गए हैं। (ख) गण्डिकानुयोग-यह अनेक प्रकार का है। जैसेकुलकरगण्डिका, तीर्थङ्करगण्डिका, गणधरगण्डिका, चक्रवर्तीगण्डिका, दशारगण्डिका, बलदेवगण्डिका, वासुदेवगण्डिका, हरिवंशगण्डिका, भद्रबाहुगण्डिका, तपःकर्मगण्डिका, चित्रान्तरगण्डिका, उत्सपिणीगण्डिका, अवसर्पिणीगण्डिका, देवमनुष्यतिर्यञ्च और नरक गति में गमन, विविध योनियों में परिवर्तनानुयोग इत्यादि गण्डिकाएँ इस गण्डिकानुयोग में कही जाती हैं। (उ) चूलिका- प्रथम 4 पूर्वो की ही श्वे० में चूलिकाएँ मानी गई हैं, शेष की नहीं / दिग0 में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। अङ्गों के क्रम में दृष्टिवाद 12वाँ अङ्ग है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध, चौदह पूर्व, संख्यात वस्तु, संख्यात चूलावस्तु, संख्यात प्राभृत, प्राभूत-प्राभृत, प्राभृतिक, प्राभृत-प्राभृतिक हैं। पद संख्या संख्यात लाख है। शेष वचनादि का कथन आचाराङ्गवत् 3. नन्दीसूत्र में 112 - दृष्टिवाद में सर्वभावप्ररूपणा है। नन्दी में प्रायः समवायाङ्ग की तरह ही दृष्टिवाद की समग्र विषयवस्तु 322
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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