SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन दृष्टिगोचर होता है, परन्तु रायपसेणीय आदि अङ्गबाह्य ग्रन्थों के उल्लेखों, समवायाङ्ग आदि में निर्दिष्ट विषयवस्तु से भिन्नता होने, मङ्गलाचरण होने आदि कारणों से इसके कुछ अंशों को बाद में जोड़ा गया है। इस ग्रन्थ का भगवती नाम श्वेताम्बरों में प्रसिद्ध है। समवायाङ्ग और विधिमार्गप्रपा में इस नाम का प्रयोग भी मिलता है। इस ग्रन्थ के प्राकृत नाम कई हैं। गोम्मटसार जीवकाण्ड में इसे 'विक्खापण्णत्ती' कहा है जो व्याख्याप्रज्ञप्ति के अधिक निकट प्रतीत होता है, परन्तु यह नाम धवला आदि में न होने से ज्ञात होता है कि यह नाम बाद में संस्कृत के स्वर-व्यञ्जन-परिवर्तन के आधार पर दिया गया है। 6-ज्ञाताधर्मकथा (क) श्वेताम्बर ग्रन्थों में 1. समवायाङ्ग में - ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञातों के (1) नगर, (2) उद्यान, (3) चैत्य, (4) वनखण्ड, (5) राजा, (6) माता-पिता, (7) समवसरण, (8) धर्माचार्य, (9) धर्मकथा, (10) इहलौकिकपारलौकिक ऋद्धिविशेष, (11) भोगपरित्याग, (12) प्रव्रज्या, (13) श्रुतपरिग्रह, (14) तपोपधान, (15) पर्याय (दीक्षा पर्याय), (16) सल्लेखना, (17) भक्तप्रत्याख्यान, (18) पादपोपगमन, (19) देवलोकगमन, (20) सुकुलप्रत्यागमन, (21) पुन: बोधिलाभ (सम्यक्त्वप्राप्ति) और (22) अन्तक्रियाओं का वर्णन है। __इसमें (1) श्रेष्ठ जिन-भगवान् के शासन की संयमरूपी प्रव्रजितों की विनयप्रधान प्रतिज्ञा के पालन करने में जो धृति, मति, और व्यवसाय (पुरुषार्थ) से दुर्बल, (2) तप-नियम, तपोपधानरूप युद्ध-दुर्धर भार को वहन करने में असमर्थ होने से पराङ्गमुख, (3) घोर परीषहों से पराजित होकर सिद्धालय प्राप्ति के कारणभूत महामूल्य ज्ञानादि से पतित, (4) विषय सुखों को तुच्छ आशा के वशीभूत होकर रागादि दोषों से मूछित, (5) चारित्र, ज्ञान और दर्शन की विराधना से सर्वथा नि:सार और शून्य, (6) संसार के अपार दुःखरूप दुर्गतियों के भवप्रपञ्च में पतित ऐसे पतित पुरुषों की कथाएँ जो धीर हैं, परीषहों और कषायों को जीतने वाले हैं, धर्म के धनी हैं, संयम में उत्साहयुक्त हैं, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और समाधियोग की आराधना करने वाले हैं, शल्यरहित होकर शुद्ध सिद्धालय के मार्ग की ओर अभिमुख हैं ऐसे महापुरुषों की कथायें हैं। जो देवलोक में उत्पन्न होकर देवों के अनुपम सुखों को भोगकर कालक्रम से वहां से च्युत होकर पुनः मोक्षमार्ग को प्राप्तकर अन्तक्रिया से विचलित (अन्तसमय में विचलित) हो गए हैं उनकी पुन: मोक्षमार्गस्थिति की कथायें हैं। अङ्गक्रम में यह छठा अङ्ग है। इसमें 2 श्रुतस्कन्ध और 19 अध्ययन हैं जो संक्षेप से दो प्रकार के हैं-चरित और कल्पित। इसमें 29 उद्देशनकाल, 29 समुद्देशनकाल और संख्यात सहस्र पद हैं। इसमें धर्मकथाओं के 10 वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग में 500-500 आख्यायिकायें हैं, प्रत्येक आख्यायिका में 500-500 उपाख्यायिकायें हैं, प्रत्येक उपाख्यायिका में 500500 आख्यायिका-उपाख्यायिकायें हैं / इस तरह पूर्वापर सब मिलाकर साढ़े तीन करोड़ अपुनरुक्त कथायें हैं। शेष वाचना आदि का कथन आचाराङ्गवत् है / 2. नन्दीसूत्र में - इसमें ज्ञाताधर्मकथा की विषयवस्तु प्रायः समवायाङ्गवत् ही बतलाई है। क्रम में अन्तर है। 'पतित प्रव्रजित पुरुषों की कथायें हैं, यह पैराग्राफ नहीं है। उद्देशन काल 19 और समुद्देशनकाल भी 19 बतलाये हैं। 3. विधिमार्गप्रपा में - इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं-ज्ञाता और धर्मकथा। ज्ञाता के 19 अध्ययन हैं-(1) उत्क्षिप्त, (2) सङ्घाट, (3) अण्ड, (4) कूर्म, (5) शैलक, (6) तुम्बक, (7) रोहिणी, (8) मल्ली, (9) माकन्दी, (10) चन्दिमा, (11) दावद्रव, (12) उदक, (13) मण्डुक, (14) तेतली, (15) नन्दिफल, (16) अवरकङ्का, (17) आकीर्ण, (18) सुसुमा और (19) पुण्डरीक। धर्मकथाओं के 10 वर्ग हैं जिनमें क्रमश: 10/10/4/4/32/32/4/4/8/8/ अध्ययन हैं। (ख) दिगम्बर ग्रन्थों में - 1. तत्त्वार्थवार्त्तिक में1- णाणकहा में अनेक आख्यानों और उपाख्यानों का वर्णन है। 2. धवला में2 - नाथधर्मकथा में 5 लाख 56 हजार पद हैं जिनमें सूत्र-पौरुषी-विधि (सिद्धान्तोक्त-विधि) से तीर्थङ्करों की धर्मदेशना का, गणधरों के सन्देह निवारण की विधि का तथा बहुत प्रकार की कथा-उपकथाओं का वर्णन है। 3. जयधवला में - नाथधर्मकथा में तीर्थङ्करों की धर्मकथाओं के स्वरूप का वर्णन है। तीर्थङ्कर दिव्यध्वनि द्वारा 314
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy