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________________ भूतबलि नामक दो शिष्यों को भेजा। वहाँ कुछ पूर्वो का ज्ञान प्राप्त कर दोनों ने मिलकर षटखण्डागम ग्रन्थ को लिपिबद्ध किया। इसके बाद गुणधर ने कसायपाहुड और आचार्य कुन्दकुन्द ने समयसारादि ग्रन्थों की रचना की। यही आज दिगम्बर परम्परा के मान्य आगम हैं। दिगम्बरों ने सभी अङ्ग आगम ग्रन्थों और उपाङ्ग आगम ग्रन्थों का लोप स्वीकार कर लिया, जो एक बड़ी भूल हुई। इधर उत्तर भारत में अकाल की विशेष परिस्थितियों में स्थूलभद्र के सङ्घ ने अपवाद स्वरूप वस्त्रादि ग्रहण करके कुछ नियमों में शिथिलता को स्वीकार कर लिया। फलस्वरूप आगे चलकर (ई.सन् प्रथम शताब्दी) श्वेताम्बर, दिगम्बर भेद बन गए और दोनों की गुर्वावलियाँ भिन्न हो गईं। प्रारम्भिक मतभेद साधु के वस्त्र को लेकर था, गुरु और शास्त्र में मतभेद होने पर भी बहुत समय तक एक ही प्रकार की मूर्ति की दोनों उपासना करते रहे परन्तु बाद में आराध्य में भेद न करके मूर्तियों की संरचना में अन्तर कर दिया गया। कुछ मान्यताओं में तथा कुछ बाह्य क्रियाओं आदि में बाह्य मतभेद होने पर भी बौद्धों की तरह दार्शनिक सिद्धान्तों (छह द्रव्य, सात तत्त्व, स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, पाँच महाव्रत, अहिंसा, वीतरागता आदि) में मतभेद नहीं हुए। इस ऐतिहासिकता को दृष्टि में रखकर परम्पराओं की भिन्नता को निम्न सारणी द्वारा दर्शाया जा सकता हैश्वेताम्बर परम्परा में स्वीकृत दिगम्बर परम्परा में स्वीकृत 1. सवस्त्र मुक्ति होती है। 1. सवस्त्र मुक्ति नहीं होती है। 2. स्त्रीमुक्ति (उसी पर्याय में) सम्भव है। 2. नहीं। 3. गृहस्थावस्था में मुक्ति सम्भव है। 3. नहीं। 4. भरत चक्रवर्ती को शीशमहल में 4. नहीं। ही केवलज्ञान प्राप्त हो गया था। 5. मल्लिनाथ (19वें तीर्थङ्कर) स्त्री थीं। 5. नहीं, पुरुष थे। 6. केवलज्ञानी कवलाहार (भोजन) करते हैं। 6. केवलज्ञानी का शरीर परम औदारिक हो जाता है अत: ___ भोजन ग्रहण की आवश्यकता नहीं है। 7. केवलज्ञानी नीहार (मल-मूत्रादि का विसर्जन) करते हैं। 7. नहीं। 8. मरुदेवी को हाथी पर चढ़े हुए ही मुक्ति हो गई। 8. नहीं। 9. साधु के लिये पहले 14 उपकरण ग्राह्य थे अब 9. साधु को संयम-रक्षणार्थ पिच्छी, कमण्डलु और शास्त्र और अधिक हो गए हैं। उपकरण ही स्वीकृत हैं, अन्य नहीं 10. वस्त्राभूषण युक्त (अलंकृत)प्रतिमा पूज्य है / 10. नहीं, पूर्ण दिगम्बर प्रतिमा की पद्मासन या स रचना में भी थोड़ा अन्तर है। खड्गासन मुद्रा ही पूज्य है। उनकी ध्यानमुद्रा ऐसी हो जिसमें चक्षु (नासाग्र दृष्टि)हो तथा शरीर से वीतरागता प्रकट होती हो। 11. भगवान् महावीर का गर्भपरिवर्तन 11. नहीं, क्षत्रियाणी के गर्भ में ही अवतरण हुआ था। (ब्राह्मणी के गर्भ से क्षत्रियाणी के गर्भ में) हुआ था। 12. भगवान् महावीर का विवाह हुआ था और 12. दोनों नहीं। एक कन्या भी हुई थी। 13. महावीर तपःकाल में 12 मास तक वस्त्र पहने रहे। 13. नहीं। 14. साधुओं और साध्वियों के द्वारा कई घरों से 14. विधि मिलने पर एक ही घर में खड़े-खड़े अंजुली में लाए गए भिक्षान्त को लाकर एकाधिक बार आहार करना। ही एक बार आहार, पानी आदि लेना 'साध्वियां बैठकर आहार करती हैं, यह अन्तर है। 15. ग्यारह अङ्ग-आगम और उपाङ्ग उपलब्ध हैं। 15. समस्त अङ्गों और पूर्वो का लोप हो गया है। परन्तु दृष्टिवाद और पूर्वो का लोप हो गया है। पूर्वो पर आधारित षट्खण्झगम तथा कषायपाहुड उपलब्ध हैं। परवर्ती कुन्दकुन्दाचार्य आदि के ग्रन्थ आगमवत् हैं। 16. आगम अर्धमागधी प्राकृत में लिखित हैं। 16. जैन शौरसेनी प्राकृत में वर्तमान आगम लिखित हैं। 17. वैमानिक स्वर्ग 12 हैं और मुख्य इन्द्र भी 12 हैं। 17. वैमानिक स्वर्ग 16 हैं परन्तु उनके मुख्य इन्द्र 12 ही हैं। सब मिलाकर इन्द्रों की संख्या 100 है। 18. मुनि के 27 मूलगुण हैं। 18. मुनि के 28 मूल गुण हैं। 270
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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