________________ दीपावली भारतीय पर्व संस्कृति के संवाहक होते हैं। इनके पीछे महापुरुषों के जीवन और कार्यों की घटनाओं का अपूर्व इतिहास छुपा होता है। ये केवल मौज-मस्ती से सम्बन्धित नहीं होते हैं अपितु इममें एक जनकल्याणकारी संदेश छुपा रहता है। दीपावली (दीप +आवली = दीप-पंक्ति) एक ऐसा ही ज्योति- पर्व है जो बाह्य-अन्धकार के साथ आभ्यन्तरअन्धकार को भी दूर कर देता है। इस पर्व में हिन्दू और जैन सभी समान भाव से सम्मिलित होते हैं। इसे आध्यात्मिक चेतना का राष्ट्रीय पर्व भी कह सकते हैं। इसे मनाने के पीछे कुछ ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख हमें प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। जैसे - 1. हिन्दू पुराणों के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम चौदह वर्ष के वनवास के बाद 'रावण' नामक राक्षस का वध करके अयोध्या वापस आए थे। तब अयोध्यावासियों ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने तथा मर्यादा पुरुषोत्तम राम का स्वागत करने के लिए नगर को सजाकर दीपोत्सव मनाया था। 2. हिन्दू पुराणों के ही अनुसार अत्याचारी और व्यभिचारी नरकासुर नरेश ने 16000 राज-कन्याओं को कैद कर लिया था जिससे प्रजाजन बहुत सन्त्रस्त थे। श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करके उन राजकन्याओं को मुक्त कराया था। फलस्वरूप प्रजा ने खुशी में दीप जलाये थे जो कालान्तर में ज्योति-पर्व बन गया। 3. हिन्दू पुराणों के अनुसार आज के दिन अत्याचारी राजा बलि को पाताल जाना पड़ा था जिससे प्रजा में हर्ष व्याप्त हुआ था। 4. सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह जी को जेल से आज के दिन मुक्त किया गया था। 5. गुरु नानक का जन्म भी इसी दिन हुआ था। 6. स्वामी दयानन्द सरस्वती की आज समाधि हुई थी। 7. जैन-परम्परानुसार कार्तिक कृष्णा अमावस्या को सूर्योदयकाल (चतुर्दशी सोमवार की रात्रि का अन्तिम प्रहर तथा अमावस्या मंगलवार का उष:काल) में चौबीसवें तीर्थङ्कर महावीर का करीब 72 वर्ष की आयु में ई. पूर्व 527 (शक सं. 305 वर्ष 5 माह पूर्व वि.सं. 470 वर्ष पूर्व) में परिनिर्वाण हुआ था। हरिवंश पुराण, तिलोयपण्णत्ति आदि की पौराणिक भाषा में जब चौथे काल (सुषमा-दुषमा) के समाप्त होने में 3 वर्ष 8.5 माह शेष रह गए थे तब तीर्थङ्कर महावीर का परिनिर्वाण हुआ था अर्थात् सर्वज्ञता के बाद 29 वर्ष 5 माह 20 दिन बीतने के बाद तीर्थकर महावीर ने अवशिष्ट चारों अघातिया कर्मों को नष्ट करके मोक्ष-लक्ष्मी का वरण किया था। इस पवित्र काल में चारों ओर एक अलौकिक प्रकाश फैल गया था। इसी दिन सायंकाल तीर्थङ्कर महावीर के प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम गणधर को केवलज्ञान हुआ था। इन दोनों आध्यात्मिक घटनाओं की खुशी में जैन दीपावली पर्व मनाते हैं तथा उनकी स्मृति में उस दिन से महावीर निर्वाण संवत् प्रारम्भ किया गया। आज वीर निर्वाण संवत् का 2545 वाँ वर्ष चल रहा है। इसी तरह अन्य कई घटनाएँ दीपावली पर्व के साथ जुड़ी हैं। इस पर्व के साथ तीन अन्य पर्व भी भारतीय संस्कृति में जुड़ गए हैं जिनकी जैनधर्मानुसार व्याख्या इस प्रकार की जाती है। (1) धनतेरस- कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को भगवान् ने बाह्य लक्ष्मी समवसरण का त्याग करके मन, वचन और काय का निरोध किया था। उस योग-निरोध से भगवान् को मोक्षलक्ष्मी प्राप्त हुई थी। अतः मोक्ष-लक्ष्मी की प्राप्ति में निमित्तभूत त्रयोदशी धन्य (धनतेरस) हो गई। अत: आज के दिन बाह्य-संग्रह का त्याग करके रत्नत्रय का संग्रह करना चाहिए। न कि बाजार से सोना, चाँदी, बर्तन आदि खरीदना चाहिए। (2) रूपचौदस- का. कृ. चतुर्दशी को भगवान् महावीर ने 18 हजार शीलों को प्राप्त कर रत्नत्रय की पूर्णता की थी तथा पूर्णरूप से अपने स्वरूप में लीन हो गए थे जिससे यह 'रूप चौदस' का पर्व बन गया। (3) गोवर्द्धन पूजा- कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन केवलज्ञान प्राप्ति के बाद स्वामी गणधर गौतम के मुखारबिन्द से 259