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________________ आई तो वह आँगन में बन्दरों के सजीव चित्र देखकर भयभीत हो गई। फलस्वरूप राजा अमरप्रभ चित्रकार पर नाराज हुए। जब राजा को मन्त्रियों ने बतलाया कि उनके परिवार का बन्दरों से पुराना सम्बन्ध हैं, उसे तोड़ना उचित नहीं है, तब राजा ने 'वानर' को अपना राजचिह्न बना दिया। इस तरह ध्वजा पर राजचिह्न वानर होने से ये वानरवंशी कहलाए, पशुजाति के नहीं। मोक्षप्राप्ति एक दिन हनुमान् अपनी रानियों के साथ सुमेरु पर्वत की वन्दना को जाते समय रात्रि में उल्कापात देखकर संसार से विरक्त हो जाते हैं। उनका आँखों के समक्ष संसार की असारता का चित्र दिखलाई देने लगता है। फलस्वरूप राम की तरह हनुमान् भी अपने साढ़े सात सौ अनुयायियों के साथ दिगम्बर जैन मुनि की दीक्षा ले लेते हैं। पश्चात् घोर तपश्चरण करके कर्मबन्धन को शिथिल करते हैं और महाराष्ट्र प्रान्त के तुङ्गीगिरी से शरीर त्यागकर मोक्ष प्राप्त करते हैं। जैन परम्परानुसार जो व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर लेता है, उसे 'सिद्ध' कहते हैं। ऐसे सिद्ध भगवान् पूज्य हो जाते हैं। आज प्रत्येक जैन निर्वाणकाण्ड के पद्य को पढ़कर, जिसका उल्लेख इस लेख में पूर्व में किया जा चुका है, अनन्त सिद्ध भगवन्तों की अर्चना करते हुए राम, सुग्रीव, गव, गवाक्ष, नील, महानील आदि के साथ हनुमान् को नमस्कार समर्पित करते हुए अर्घ्य चढ़ाते हैं। इस तरह जैन कथा-साहित्य में हनुमान् का उज्ज्वल चरित्र अङ्कित है। रूप-सौन्दर्य के कारण इनकी गणना कामदेवों की जाती है। मोक्षगामी श्रेष्ठ पुरुषों की तरह आपके सुडोल एवं बलिष्ठ शरीर की संरचना प्रशस्त (समचतुरस्रसंस्थान और वज्रवृषभनाराचसंहनन वाली) थी। इनकी विशेषताएँ थीं1. ये विद्याधर जाति के मनुष्य थे, बन्दर नहीं। बन्दर इनका राजचिह्न था। 2 लांगल इनका पाश (शस्त्र) था, पूँछ नहीं। 3. पवनञ्जय राजा और अञ्जना सुन्दरी की औरस सन्तान थे, न कि वायुदेवता से इनकी उत्पत्ति हुई थी। 4. जन्मकाल के समय ये विमान से नीचे गिर गए थे, जिससे शिला चकनाचूर हो गई थी, इन्हें चोट नहीं आई थी। इन्द्र ने इन पर वज्र प्रहार नहीं किया था।" 5. सुग्रीव के अधीन नहीं थे, अपितु श्रीपुर के स्वतन्त्र राजा थे।12 6. विशल्या नामक स्त्रीचिकित्सिका को ससम्मान लाए थे, न कि सञ्जीवनी प्राप्ति के लिए पर्वत उठाकर लाए थे। 7. ये विपुल सेना के साथ सीता अन्वेषण के लिए आकाशगामी विमान में बैठकर दुर्गम लङ्का में गए थे, न कि आकाश में उड़ते हुए। 8. पैरों से लङ्का को ध्वस्त किया था। 4 9. सूर्य को फल समझकर उसे खाने की घटना नहीं है। 10. हनुरुह द्वीप में जन्म संस्कार होने से हनुमान् नाम रखा गया था। पवनञ्जय पुत्र होने से पवनसुत तथा शिला चकनाचूर करने की घटना से श्रीशैल कहलाते हैं। 11. रावण के साथ पारिवारिक सम्बन्ध थे। वरुण युद्ध में उनकी सहायता की थी जिससे प्रसन्न होकर रावण ने अपनी बहिन चन्द्रनखा की कन्या अनङ्गपुष्पा से विवाह कराया था परन्तु सीता-अपहरण से नाराज होकर राम की सहायता की। 12 हनुमान् की अनेक रानियाँ थी”, परन्तु बाद में ब्रह्मचारी बनकर घोर तपस्या की और परमपद (मोक्ष) प्राप्त किया। 13. दिगम्बर जैन धर्म के अनुनायी थे। 14. रावण के यहाँ रहते समय सती सीता ने अपने उपवास व्रत को हनुमान के अनुरोध पर तोड़ा था। 15. लङ्का जाकर सर्वप्रथम विभीषण से सम्पर्क करते हैं और रावण को नीति की सलाह देने की प्रेरणा देते हैं। 16. बीसवें तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथ के काल में उत्पन्न बीसवें कामदेव हैं। सन्दर्भ सूची 1. तिलोयपण्णत्ति 4.1472-1673 2. तिलोयपण्णन्ति 4.1470, 1440-1442, त्रिलोकसार 835, 841, हरिवंशपुराण 60.547 3. पद्मपुराण 223
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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