SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध-सारस्वत 2 को दिन में 11.30 बजे (सितम्बर 1935) पुनः तृतीय कन्या पैदा हुई। नक्षत्र था शतभिषा, दिन था शुक्रवार और राशि थी कुम्भ। उसे ललिता (राशि नाम सुशीला) नाम से प्रसिद्धि मिली। इसके बाद पुत्र की आशा में दो और कन्यायें पैदा हुई परन्तु वे जीवित नहीं रहीं। निराश माता सरस्वती ने पाँच जन्म दिया। उस समय शतभिषा नक्षत्र था, दिन था शुक्रवार, वृष लग्न थी और राशि कुम्भ थी। राशि का नाम था शीलचन्द परन्तु सुन्दर अधिक होने से नाम प्रचलित हुआ 'सुदर्शन'। सर्वत्र खुशी की लहर फैल गई मङ्गल गीत गाए जाने लगे। जैन परम्परानुसार पूजा-विधान आदि मांगलिक क्रियायें की गई। मैं बालक्रीडायें करते हुए बड़ा होने लगा। परन्तु करीब 10 मास बाद गर्भवती माता सरस्वती देवी को समय पूर्व प्रसव वेदना हुई और गर्भस्थ शिशु के साथ (वि.सं. 2000 माधमास में, ई. 1944) उनका भी स्वर्गवास हो गया। सर्वत्र शोक छा गया। माताजी उस समय नोहटा में परिवार के साथ रहती थी। वहीं पिताजी की बहिन श्रीमती सुन्दरीबाई की ससुराल भी थी। माता जी उस समय शाहपुर में होने वाले भगवान् के गजरथ (पंचकल्याणक) महोत्सव में जाने के लिए प्रातः जैसे ही बस में बैठी कि तबियत बिगड़ गई। अत: उनको वहीं उतार लिया गया और उपचार करते करते, णमोकार मन्त्र सुनाते-सुनाते दोपहर को प्राणान्त हो गया। माता जी स्वभावत: बड़ी धार्मिक स्वभाव की थीं तथा उस समय धर्माराधना की भावना से पुण्यवर्धक भगवान् के पवित्र गजरथ महोत्सव में जाने की प्रबल भावना से आप्लावित थीं तथा अंतिम समय में णमोकार महामंत्र जपते हुए प्राण विसर्जन हुआ था जिससे निश्चय ही उन्हें सद्गति मिली होगी। यह उनका सौभाग्य ही था या चमत्कार था कि बीच रास्ते में यह घटना नहीं हुई अन्यथा गति बिगड़ सकती थी परन्तु परिवार को (विशेषकर मुझे) बड़ा दुःख झेलना पड़ा। मैं तो माँ के प्यार से बचपन में ही वंचित हो गया। परिणाम यह निकला कि मैं प्राय: नोहटा (बुआ के घर) या खमरिया (बड़ी बहिन के घर) या पाटन (छोटी बहिन के घर) में समय बिताने लगा। तीनों बहिनों पर मेरे पालन का भार था क्योंकि पिता जी एक स्थान से दूसरे स्थान पर ट्रांसफर होने से तथा अध्यापन का उत्तरदायित्व होने से मेरी देखरेख पूर्णरूप से नहीं कर पाते थे। बेटियों का तथा मेरा विवाह उस समय बाल-विवाह प्रचलित थे। उसी परम्परा को मानते हुए मेरे पिता जी ने मेरी बड़ी बहिन (श्रीमती त्रिशला) का विवाह 9 वर्ष की अवस्था में समीपस्थ ग्राम खमरिया के सिंघई रूपचन्द जैन के साथ कर दिया, उस समय पिताजी नोहटा में रहते थे। - इसके बाद 11 वर्ष की उम्र में मेरी दूसरी बहिन (श्रीमती शान्तिबाई) की शादी रहली निवासी सिंघई दीपचन्द जैन अर्जीनवीस के साथ कर दी। यह शादी मेरे ननिहाल मञ्जला से की। शान्ति ने कक्षा दो तक पढ़ाई की थी। दीपचन्द जी की यह दूसरी शादी थी। पहली पत्नी से दो कन्यायें हुई थीं। मेरी बहिन ने उन्हें भी पाला-पोसा। पिता जी को कन्या बहुत पसन्द थी। इसके बाद मेरी छोटी बहिन (श्रीमती ललिता) की शादी भी द्विजवरिया सिङ्कई देवचन्द जैन स्वतंत्रता सेनानी से पाटन (जिला जबलपुर) में कर दी। उन्हें पहली पत्नी से कोई सन्तान नहीं थी। परन्तु बहुत गरीबी थी। ललिता के भाग्य से शादी के बाद उनकी घर की माली हालत बहुत सुदृढ़ हो गई। शादी के समय मेरी छोटी बहिन की उम्र मात्र 14 वर्ष थी। तीनों बहिनों की शादी के बाद मेरी शादी 22 वर्ष की उम्र में दिनांक 13.5.1965 में दमोह निवासी सिङ्कई राजाराम की पुत्रवधु (स्व. छोटेलाल की पत्नी श्रीमती सोना जैन) की पुत्री मनोरमा जैन के साथ करा दी। उस समय वरवधू दोनों पक्ष वाले दमोह में ही रहते थे। शादी के समय मैं रिसर्च (पी-एच.डी.) कर रहा था। मेरी शादी डॉ. मनोरमा जैन के साथ होने का बड़ा प्रबल योग था। उस समय मनोरमा जी ने 11 वीं की परीक्षा दी थी तो मैंने पिताजी के विशेष आग्रह पर कहा 'यदि लड़की प्रथम श्रेणी से पास हो जायेगी तो हम शादी कर लेंगे। परन्तु दो अंकों से मनोरमा की प्रथम श्रेणी नहीं आई। मनोरमा तथा मेरी शादी कराने का प्रबल योग था कि अन्यत्र होते-होते यहीं हो गई। मनोरमा की प्रिय सहेली थी कु. कमला जैन तथा कमला जैन का भाई सुमत जैन मेरा मित्र था। यह परिवार सेठ गुलाबचंद जी का था जिन्होंने मेरे पिताजी का सहयोग किया था। अतः उस घर से दोनों का घनिष्ठ सम्बन्ध था। अत: मैं भी राजी हो गया। दहेज वगैरह का कोई प्रतिबन्ध नहीं रहा। शादी के बाद मैंने मनोरमा जी को बी.ए. आचार्य (एम.ए.) तथा पी-एच.डी. कराई। 134
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy