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________________ सिद्ध-सारस्वत बुंदेलखंड की महान विभूति बुंदेलखंड की धरा पर अनेक विद्वानों का जन्म हुआ है, जिससे बुंदेलखंड की माटी को विद्वानों की जननी होने का गौरव प्राप्त हुआ है। आदरणीय प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन संस्कृत प्राकृत पाली हिंदी अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं के उच्च कोटि के विद्वान् हैं, जिससे भारत सरकार ने प्रोफेसर साहब को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया है। प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन की सहजता सरलता और सौम्यता तो समाज को आदर्श के रूप में ग्रहण करनी चाहिए। प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन एक प्रभावशाली प्रशासक भी रहे हैं। जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में कला संकायाध्यक्ष के पद पर थे, तब उनसे अनेक लोग बहुत ही प्रभावित हुए और उनकी प्रशासन कार्यशैली से सभी ने सीखने का प्रयास किया। इसके बाद श्री स्याद्वाद महाविद्यालय में प्रबन्धतन्त्र के अध्यक्ष के पद पर नियुक्त हुए तबसे उनका बच्चों के प्रति स्नेह बहुत ज्यादा था। विद्यालय को किस प्रकार से आगे तक विकसित किया जाए उनकी इस नई सोच ने नई दिशा देने का प्रयास किया। प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन से हमारा संपर्क सन् 2007 में श्री स्यादवाद महाविद्यालय में हुआ था। इसके बाद जब मैं श्री गणेश वर्णी दिगंबर जैन शोध संस्थान में शोध अधिकारी पद पर नियुक्त हुआ तब से उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त होता रहा है ,और उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है की आगे भी प्राप्त होता रहेगा। प्रोफेसर साहब संपूर्ण भारत के जैन रत्नों के खजानों के कोहिनूर हैं। मैं क्या लिखू मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं। मैं उनके चरणों में अपनी विनयाञ्जली समर्पित करता हूं, और भगवान महावीर स्वामी से उनकी दीर्घायु की कामना करता डॉ. मनीष कुमार जैन शोधाधिकारी श्री गणेश वर्णी दिग. जैन शोध संस्थान नरिया, वाराणसी अनुकरणीय व्यक्तित्व किसी देश की महत्ता उसकी भौतिक समृद्धि से नहीं वरन् उसकी संस्कृति को अक्षुण्ण रखने वाले विद्वानों से होती है। ऐसे ही मूर्धन्य विद्वान् माँ सरस्वती के आराधक, जैनदर्शन के मर्मज्ञ प्रो. सुदर्शन लाल जी जैन के सान्निध्य का अवसर मुझे भी प्राप्त हुआ है। बुन्देलखण्ड की उर्वरा-धरा के रत्न, संस्कृत एवं प्राकृत साहित्याचार्य, विद्वद्वरेण्य, सिद्धसारस्वत प्रो. जैन ने संस्कृत के गढ़ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को अपनी मेधा से अलंकृत किया। यहाँ पर अपने सुदीर्घ सेवाकाल में सैकड़ों छात्रों को शिक्षण के साथ-साथ अपने अनुकरणीय व्यक्तित्व एवं कृतित्व के द्वारा सन्मार्ग की ओर अग्रसर किया। आपके प्रेरणास्पद मार्गदर्शन में भारतीय साहित्य एवं संस्कृति के अनेक विद्वानों का उदय हुआ। आपके साहित्य-सृजन एवं संपादन कार्य में गहन चिन्तन मनन की छाप परिलक्षित होती है। संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु आपके द्वारा किये गये प्रयास अविस्मरणीय हैं। शिक्षा जगत् के साथ-साथ धार्मिक जगत को भी आपने अपने बहुमूल्य योगदान से उपकृत किया है। समाज सेवा के साथ-साथ विदेशों में जैनदर्शन के प्रचार-प्रसार में अग्रसर रहकर जैन सिद्धान्तों की महती प्रभावना की है। जहाँ एक ओर प्रो. साहब ने प्रबुद्ध निष्ठावान् आदर्श प्राध्यापक और कुशल प्रशासक के रूप में अपनी पहचान बनाई, तो दूसरी ओर उनके व्यवहार कुशल, मृदुभाषी, निश्चल, निरभिमानी व्यक्तित्व एवं सहज मुस्कान में एक ऐसा आत्मीय आकर्षण है, जो मिलने वालों को सहज ही आकृष्ट कर लेता है। आपका सरल एवं सौम्य व्यक्तित्व न सिर्फ अपनेपन का अहसास कराता है वरन् मन को भी जीत लेता है। आपका व्यक्तित्व एवं कृतित्व संपूर्ण समाज के लिये अभिनंदनीय एवं अनुकरणीय है। हमारी हार्दिक मङ्गलकामना है कि प्रो. साहब दीर्घकाल तक हम सभी के प्रेरणास्रोत बनकर पथ प्रदर्शन करते रहें। 'जीवेत् शरदः शतम्' श्री प्रभात कुमार जैन प्रबन्धक, बैंक ऑफ इण्डिया, भोपाल 107
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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