SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध-सारस्वत श्रुत सेवक विद्वान् मनीषी श्रुत सेवक विद्वान् मनीषी ज्ञान विभूति सरल हृदय निष्पक्ष तुम्हारे अवदानों को याद रखेगा सदा समय स्वाभिमान की ओढ़ के चादर फसल उगाई तुमने जीवन का आनंद उठाया संघर्षों की धुन में उपलब्धि के आसमान में अनगिनत जड़े सितारे रमा मनोरमा संग जिन्होंने स्वप्निल रंग संवारे जगतख्यात विश्वविद्यालय में तुम शीर्ष पदों तक पहुँचे राष्ट्रपति जी पुरस्कार के पदक तुम्हें भी सौंपे माँ गंगा के नगर बनारस की स्मृतियों को बाँधे चले आये झीलों के शहर में है सौभाग्य हमारे है विराट व्यक्तित्व आपका हम भाव रंग भरते हैं पंडित प्रवर सुदर्शन जी का हम अभिनन्दन करते हैं यही प्रार्थना है भगवन आनंद में आँखें नम हो। जिनवाणी के वरदपुत्र का जीवन और सुगम हो जो भव सागर से पार लगाये बैठ सके उस नाव में सबके पंथ सुदर्शन हो भगवान तुम्हारी छाँव में / सदैव आपके स्नेही ऋणी कवि श्री चंद्रसेन जैन भोपाल 105
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy