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________________ सिद्ध-सारस्वत ज्ञानामृत का झरना जिन अभिनंदन हम कर रहे, किया काशी ने अति हर्षाय मनोहार की ज्ञान की, दिया जहाँ दोनों हाथ-लुटाय। प्रथम नमाऊं शीष मैं, उन मात-पिता को जाय, जिनने ऐसा लाल जना, श्री राष्ट्रपति ने किया सम्मान बुलाय।। 1 / / निर्धन कुल में जन्म लिया, नाम पितु सुदर्शन दिया रखाय, साक्षात सरस्वती माँ जिनकी, पितु सिद्धेलाल कहाय। कीचड़ में उग कमल ने, लावण्यता ऐसी दई दिखाय, जो आया सम्पर्क में, वो हुआ प्रभावित जाय।। 2 / / सङ्कर्ष मई जीवन जीया, मसीहा विधि ने दिया बनाय, ज्यों अंधकार को चीर दिवाकर, अवनी पै ले अंगडाय। छात्रवृत्ति से पढ़े सदा, महाविद्यालय पहुँचे जाय, उच्च प्रतिष्ठित पद पाकर, ज्ञान की ज्योती दई जलाय।। 3 / / उन्तालीस वर्ष तक ज्ञान उढ़ेला, पद विभागाध्यक्ष निर्माय, सङ्काय प्रमुख भी रहे वहाँ, निज ज्ञान का दीप जलाय। फिर भी अहं नहीं जागा, निज गरिमा दई दिखाय, छात्र सभी नतमस्तक हुये, ऐसे गुरु को पाय।। 4 / / चौबालीस छात्र डॉक्ट्रेट कराई, निर्देशन दिया दिखाय, ऐसे ज्ञानपुञ्ज ने सबको, निज प्रतिभा दई दिखाय। रहे सदा वो उच्च पदों पर, ज्यों ध्रुवतारा चमकाय, ऐसे मूर्धन्य मनीषी को, रहे शत-शत शीष नमाय।। 5 / / जैन धर्म के उच्च पदों को, किया सुशोभित जाय, अखिल भारतीय जिन समूह ने, लीना शीष बिठाय। ऊँचा मस्तक कर दिया, हम तातें रहे बढ़काय, निज कुल और निजधर्म को, दीना व्योम चढ़ाय।। 6 / / भाग्योदय जब होत है, वैसे सब योग मिलाय, ऐसे पुत्र मिले उनको, दिया पितु का मान बढ़ाय। ज्ञान क्षितिज-को छू करके, अमेरिका में पहुँचे जाय उच्च पदों को किया सुशोभित, राष्ट्र का डंका दिया बजाय।।7।। पिच्चहत्तरवीं हम वर्षगांठ को, हो पुलकित रहे मनाय, सौवीं भी वर्षगांठ मनायें, मन में मोद- मनाय। ज्ञानामृत झरता रहे, झर-झर अवनी पै आय 'उत्साही' करता कामना, अज्ञान तिमिर विनशाय।। 8 / / श्री नरेन्द्र 'उत्साही' जैननगर, भोपाल 97
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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