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________________ सिद्ध-सारस्वत सबसे प्रेमभाव प्रो. सुदर्शन लाल जैन जैन-विद्या के मूर्धन्य विद्वानों की प्रथम पंक्ति में आते हैं। प्रो. जैन जी से मेरा प्रथम परिचय मई 1991 में अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के सेमिनार में पार्श्वनाथविद्यापीठ में हुआ। पुस्तकालय का उपयोग करने के लिये आप पार्श्वनाथ विद्यापीठ आते रहते थे। प्रो. जैनसाहब से नजदीकी सम्बन्ध तब हुआ जब आप 11 मार्च 2010 को पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक का पदभार ग्रहण किये। इनके कार्यकाल में पार्श्वनाथ विद्यापीठ का काफी विकास हुआ। मेरे शोध के पञ्जीकरण में आपका काफी सहयोग रहा है। प्रो. जैन बहुत ही सरल और उदार प्रवृत्ति के विद्वान् हैं। सबको साथ लेकर चलना और संस्था के विकास में ईमानदारी से लगे रहना, आपकी विशेषता है। आपने विद्यापीठ में अनेक कार्य किए। श्रमण-पत्रिका को भी नया रूप प्रदान किया। इनका अभिनन्दन ग्रन्थ निकालने का निश्चय एक थाघनीय प्रयत्न है। मैं इनके दीर्घायु एवं स्वस्थ्य रहने की कामना करता हूँ। यह इनके अमूल्य कार्यों के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है। डॉ. ओम प्रकाश सिंह ग्रन्थालयाध्यक्ष, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी समादरणीय बैंक खाताधारक मैं डॉ. सुदर्शन लाल जैन को विगत दो-तीन वर्षों से जानता हूँ। ये हमारे स्टेट बैंक की एयरपोर्ट शाखा के नियमित ग्राहक हैं। इनका व्यवहार बहुत ही सरल एवं सहयोगात्मक रहता है। आप जैनदर्शन के एवं संस्कृत के अच्छे ज्ञाता हैं / राष्ट्रपति द्वारा उनको सम्मान स्वरूप पुरस्कार प्रदान किया गया है। आप जैसे व्यक्ति यदि इस बैंक से जुड़ते हैं तो बैंक का अहोभाग्य है। मैं उनके उज्ज्वल भविष्य एवं संस्कृत की निरन्तर सेवा करते रहने हेतु ईश्वर से प्रार्थना करता श्री विवेक तिवारी शाखा प्रबन्धक, भारतीय स्टेट बैंक, एयरपोर्ट रोड शाखा, भोपाल सुमति सुधा श्रुत-संवर्धक जैन जगत के सरस्वती पुत्र, आज तलक हैं बहु विद्वान। भूतकाल भी हुये अनेकों, वर्तमान अर भावि काल।। मङ्गल बेला एक आज है, हृदय उठी है हर्ष लहर। अभिनन्दन ग्रन्थ है जिन्हें समर्पित, लाल सुदर्शन नगर।।1।। बुन्देली भूजिला है सागर, ग्राम मंजला बड़कुल जैन। पिता सिद्धेलाल जी शिक्षक जानो, जन्मदात्री माँ सरस्वती जैन / / अल्पवय में माँ वियोग सह, पितृ छांह में पले बढ़े। परिजन-पुरजन प्यार प्राप्तकर, शिक्षा और संस्कार मिले।।2।। युवा हुये तो जीवन पथ में, मनोरमा का संग मिला। जीवन बगिया हुई है पुष्पित, कुल दीपक त्रय पुत्र भला।। कन्यारत्न भी मिली मनीषा, और पौत्रियाँ नातिन हैं। 88
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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