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________________ [111 सर्वनाम, संख्या ] 1: व्याकरण सर्वेण सर्वाभ्याम् सर्वः सर्वस्मै " सर्वभ्यः च सर्वस्मात् " " पं० सर्वस्य सर्वयोः सर्वेषाम् प. सर्वस्मिन् " सर्वेषु स० (70) 'सर्व' (सब) नपुं०सर्वम् सर्वे सर्वाणि प्र०, द्वि० सर्वया सर्वस्यै सर्वस्याः .. सर्वस्याम् सर्वाभ्याम् सर्वाभिः सर्वाभ्यः . सर्वयोः सर्वासाम् // सर्वासु शेष पुं० की तरह। संख्यावाचक शब्द ( Cardinals )' 110] संस्कृत-प्रवेशिका [6: शब्दरूप कम् को कान् द्वि. काम् के काः केन काभ्याम् कः तृ० कया काभ्याम् काभिः कस्म केम्यः कस्यै काभ्यः कस्मात्-" " पं० कस्याः कस्य कयोः केषाम कयोः कासाम् कस्मिन् " केषु स० कस्याम् " कासु (67) 'किम्' (कौन) नपुं०किम् के कानि प्र०, द्वि० शेष पुं० की तरह / (सर्व वाचक सर्वनाम-विशेषण=Pronominal Adjective) (68) 'सर्व२ (सब = All ) पुं०- (66) 'सर्व' (सब) स्त्री० सर्वः सवौं सर्वे प्र० सर्वा सर्वेसर्वाः सर्वम् सर्वान् द्वि० सर्वाम् " " १.सर्वनामों के कुछ अन्य प्रकार--(१) निजवाज़क सर्वनाम ( Reflexive Pronoun)--स्व (स्वयम्) आदि / (2) अनिश्चयवाचक सर्वनाम ( Indefinite Pronoun )--'किम्' शब्द में चित्, चन, अपि, और स्वित् जोड़कर अनिश्चयवाचक सर्वनाम सब लिङ्गों और सब विभक्तियों में बनते हैं। जैसे-कः + चित् = कश्चित्, कौचित्, केचित् / क: + अपि-कोऽपि, कावपि, केऽपि / कः + चन-कश्चन, कौचन, केचन / का+चित्काचित / किम् + चित् किञ्चित् / कस्मिन् + चित् कस्मिश्चित् / (3) अन्योन्यसम्बन्धवाचक सर्वनाम ( Reciprocal Pronoun)-अन्योन्य, इतरेतर, परस्पर मादि / (4) सम्बन्धवाचक सर्वनाम-विशेषण (Possessive Pronoun) ये तद् आदि शब्दों में 'ईय' (छ) जोड़कर बनते हैं। जैसे-तदीय, मदीय, अस्मदीय आदि / 2. (क) अन्य (दूसरा), सम (सब), अन्यतर (दो में से कोई एक), इतर (दूसरा), कतम (बहुतों में से कौन), एकतम (बहुतों में से एक), विश्व, एकतर, 'पूर्व (पहला, पूर्व दिशा), अवर (पीछे, पश्चिम), दक्षिण, उत्तर (पिछला, उत्तर दिशा, बड़ा), अवर (दूसरा, घटिया), अधर (निचला, पटिया), पर (दूसरा), अन्तर, स्व ( अपना) आदि प्रायः सभी सर्वनाम शब्दों के रूप सर्व शब्द की ही तरह चलते हैं। (ख) कति, उभ और उभय शब्दों के रूप-'कति' (कितने) शब्द के रूप नित्य बहुवचनान्त और तीनों लिङ्गों में एक से होते हैं। जैसे-कति, कति, (71) 'एक' (एक) ['सर्व' शब्दवत्] (72) 'द्वि' (दो) (73) 'त्रि' (तीन) पुं० स्त्री० न० पुं० स्त्री०,नपुं० पुं० स्त्री० नपुं० प्र० एकः एका एकम् द्वौ त्रयः तिस्रः त्रीणि द्वि० एकम् एकाम् " " त्री , कतिभिः, कतिभ्यः, कतिभ्यः, कतीनाम्, कतिषु / 'उभ' (दोनों) शब्द के रूप नित्य द्विवचनान्त होते हैं / जैसे-पु. में क्रमशः रूप होंगे--उभौ, उभौ, उभाभ्याम्, उभाभ्याम् , उभाभ्याम्, उभयोः, उभयोः। स्त्री० एवं नपु' के प्रथमा-द्वितीया में 'उभे रूप बनेंगे; शेष पुं० की तरह / 'उभय' (उभ + अयच् ) शब्द के रूप एकवचन और बहुवचन में होते हैं। जैसे-पु. में 'तद' शब्द की तरह (उभयः, उभये / उभयम् उभयान्)। स्त्री० में 'नदी' की तरह (उभयी, उभय्यः)। नए में प्र० वि० के 'उभयम् , उभयानि' रूप होंगे, शेष पुं० की तरह। 1. (क) संख्यावाची शब्दों में 'एक' शब्द के एकवचन में 'द्वि' शब्द के द्विवचन में और 'त्रि' से लेकर 'अष्टादश' तक के शब्दों के रूप केवल बहुवचन में चलते हैं। (ख) संख्यावाची एक शब्द का प्रयोग निम्न 7 अर्थों में होता हैएकोऽल्पार्थो प्रधाने च प्रथमे केवले तथा / साधारणे समानेऽपि संख्यायाच प्रयुज्यते / ' नोट-संख्यातिरिक्ति 'अल्प' आदि अर्थों में 'एक' शब्द का प्रयोग होने पर उसके द्वि० और बहुवचन के भी रूप बनेंगे / जैसे-एकानि फलानि /
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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