________________ तत्पुरुष ] 1. व्याकरण संस्कृत-प्रवेशिका [8 : समास -जाड़े की समाप्ति)। 7. असम्प्रति ( अनौचित्य) अतिनिद्रम् (निद्रा सम्प्रति न युज्यते - निद्रा के अनुपयुक्त काल में)1.शब्दप्रादुभोव (शब्द का प्रकाश)इति हरि (हरिशब्दस्य प्रकाशमहरि शब्द का उच्चारण)। 9. पश्चात् -अनुविष्णु (विष्णोः पश्चातृ-विष्णु के पीछे); अनुरथम् / 10. यथाभाव ( योग्यता, बीमा, अनतिक्रम) अनुरूपम् (रूपस्य योग्यम्-रूप के योग्य ); प्रत्यर्थम् (अर्घम् अर्थम् प्रतिब्धति अर्थ ); यथाशक्ति (शक्तिमनतिक्रम्यशक्ति के अनुसार); प्रतिगृहम् ययाकामम् / 11. आनुपूर्य (क्रम)-अनुज्येष्ठम् (ज्येष्ठस्य आनुपूणज्येष्ठ के क्रम से)। 12. योगपद्य (एक साथ)-सचक्रम्' (चक्रेण युगपत्न्च क्र के एकदम साथ)। 13. सादृश्य-सहरि (हरेः सादृश्यम् -हरि के सदृश); सस खि (सदृणः सपा-सबि के सदृश)। 14. सम्पत्ति-सक्षत्रम् (क्षत्राणां सम्पत्तिः= क्षत्रियों की सम्पत्ति)। 15. साकन्य (सम्पूर्णता)-सतृणम् (तृणमपि अपरित्यज्य - सब कुछ)। 16. अन्त (तक)-साग्नि (अग्निग्रन्थपर्यन्तम् - अग्निकाण्ड पर्यन्त ); आसमुद्रम् / तत्पुरुष समास (1) तत्पुरुष समास में उत्तरपद की प्रधानता होती है। इसमें पूर्वपद विशेषण का कार्य करता है और उत्तरपद विशेष्य का / (2) इस समास में लिङ्ग और वचन उत्तरपद के अनुसार होते हैं / जैसे-देवस्य मन्दिरम् = देवमन्दिरम् ( भगवान का मंदिर)। (3) तत्पुरुष शब्द का दो प्रकार से विग्रह किया जाता है-(१) तस्य पुरुषः= तत्पुरुषः (व्यधिकरण); (2) सः पुरुषः= तत्पुरुषः (समानाधिकरण)। अतः तत्पुरुष समास के अधिकरण (विभक्ति) की अपेक्षा दो प्रमुख भेद हैं(क) व्यधिकरण तत्पुरुष-जिसके दोनों पद विभिन्न विभक्तियों वाले हों अर्थात् पूर्वपद में द्वितीयादि विभक्तियां और उत्तरपद में प्रथमा विभक्ति हो (ब) समानाधिकरण तत्पुरुष--जिसके दोनों पद समान विभक्ति (प्रथमा विभक्ति) वाले हों। (4) व्यधिकरण तत्पुरुष 'तत्पुरुष' के नाम से और समानाधिकरण तत्पुरुष 'कर्मधारण' के नाम से प्रसिद्ध है। कर्मधारण समास में जब पूर्वपद संख्या वाची होता है तो उसे ही 'द्विगु समास के नाम से जाना जाता है। तत्पुरुष (व्यधिकरण तत्पुरुष%Determinative Compound) इसमें पूर्वपद द्वितीया, तृतीया आदि विभक्तियों वाला होता है और उत्तरपद प्रथमा विभक्ति वाला होता है। पूर्वपद की विभक्ति के भेद से यह 6 प्रकार का है 1. अध्ययीभाव समास में काल से भिन्न अर्थ में 'स' को 'सह' हो जाता है / जैसेसह+पासचक्र, सह + हरिम्सहरि; सह+अग्नि साग्निः सह + तृणम् -सतृणम् / 1. द्वितीया तत्पुरुष (द्वितीयान्त + प्रथमान्त)-कृष्णं धितः- कृष्णथितः (कृष्ण के सहारे); आशाम् अतीतः= आशाऽतीतः (आशा से अधिक); शोक पतितः= शोकपतितः (शोक में डूबा हुआ ); सुखं प्राप्तः - सुखप्राप्तः अथवा प्राप्तसुखः (सुख-को प्राप्त हुआ; प्राप्त और आपन्न शब्दों का पहले भी प्रयोग हो सकता है); शरणं प्राप्तः = शरणप्राप्तः अथवा प्राप्तशरणः (शरण में आया हुआ); दुःखम् अतीतः- दुःखातीतः (दुःख के पार गया हुआ); कूपं पतित-कूपपतितः (कुए में गिरा हुआ); ग्रामं गतः= ग्रामगतः (गाँव को गया हुआ) कूपम् अत्यस्तः-कूपाऽत्यस्तः (कुए में फेंका हुआ)। 2. तृतीया तत्पुरुष (तृतीयान्त + प्रथमान्त)-शङ्कलया खण्डः = शलाखण्डः (सरौता से किया हुआ टुकड़ा); हरिणा त्रातः% हरित्रातः (हरि से रक्षा किया हा); नखैः भिन्नः = नवभिन्नः (नखों से फाड़ा हुआ); आचारेण कुशलः = आचारकुशलः (आचार से कुशल); कुट्टनेन श्लक्ष्णम् % कूद्रनश्लक्षणम् (कटने से चिकना); वाचा युद्धम् = वाग्युद्धम् (वाणी से युद्ध); मासेन पूर्वः- मासपूर्वः (एक माह पूर्व); वाचा कलहः वाक्कलहः (वाणी से कलह); मात्रा सदृशः = मातृसदृशः (माता के समान)। 3. चतर्थी तत्पुरुष (चतुप्यन्त + प्रथमान्त )--गोभ्यो रक्षितम् = गोरक्षितम् (गौओं के लिए रखा हुआ); धनाय लोभः = धनलोभः (धन के लिए लोभ); यूपाय दारु % यूपदारु (यज्ञ-स्तम्भ के लिए लकड़ी); कुम्भाय मृत्तिका कुम्भमृत्तिका (घड़े के लिए मिट्टी); भूतेभ्यो बलिःभूतबलिः (भूतों के लिए उपहार); छात्राय हितम् = छात्रहितम्, (छात्र के लिए हितकर); द्विजाय अयम् = द्विजार्थः सूपः (ब्राह्मण के लिए दाल; अर्थ शब्द के साथ नित्य समास होगा और समस्तपद का लिङ्ग तथा विग्रह में 'इदम्' के रूप का प्रयोग विशेष्य के अनुसार होगा); द्विजाय इदम् = द्विजार्थ पयः (ब्राह्मण के लिए दूध); द्विजाय इयम् = द्विजार्था यवागूः (ब्राह्मण के लिए लप्सी)। 4. पञ्चमी तत्पुरुष (पञ्चम्यन्त + प्रथमान्त)-चौराद् भयम् - चौरभयम् (चोर से डर ); सिंहात् भीतः = सिंहभीतः (सिंह से भय ); सद् भीतिः = सर्पभीतिः (सर्प से भय ); अयशसः भीः = अयशोभीः (निन्दा से डर); स्तोकात्मुक्तः - स्तोकाग्मुक्तः, (थोड़े से मुक्त; स्तोकादि से परे पञ्चमी का लोप नहीं होता ); दूरात् मागतः- दूरादागतः (दूर से आया हुभा); वृक्षात् पतितः वृक्षपतितः (वृक्षा से गिरा हुमा); मार्गाद भ्रष्टः- मार्गभ्रष्टः (मार्ग से पतित)। 5. षष्ठी तत्पुरुष (षष्ठयन्त+प्रथमान्त )-राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः (राजा' का आदमी); देवस्य मन्दिरम् - देवमन्दिरम् ( देवता का मन्दिर); लम्मा