________________ संस्कृत-प्रवेशिका [४:तद्धित-प्रत्यय तसिल, प्रल, दा] 1. व्याकरण [ 55 (0, बुद्धिवाला या बुद्धि से युक्त ), बुद्धिमती ( स्त्री०) / गो + मतुप् = गोमत, गोमान्, गोमती / सुख + इनि-सुखिन् >सुखी (पु.), मुखिनी (स्त्री०)। नोट-मत्वर्थीय का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है-(१) तद् अस्य अस्ति (वह इसका है या इसके पास है ) और (2) तद् अस्मिन् अस्ति (वह इसमें है)। जैसे-गोमान् - 'गावः अस्य सन्तीति गोमान्' ( गायें जिसके पास हैं वह पुरुष ) अथवा 'गायः अस्मिन् सन्तीति गोमान् (जहाँ गायें है, वह प्रदेश)। शानी-ज्ञानमस्यास्तीति ज्ञानी-(शानवान् -ज्ञानवाला)। (क) 'मतुप' (मत् या बत् ) प्रत्ययान्त रूप-'मतुप' प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पु. में 'भगवत्', स्त्री० में 'मदी' तथा न' में 'जगत्' का सरह बनेंगे। जैसे(क्रमशः तीनों लिङ्गों में) श्री>श्रीमद, श्रीमान् (श्रीरस्यास्तीति), श्रीमती। मति>मतिमत्, मतिमान्, गतिगती। धी>धीमद, धीमान, धीमती। साधु> साधुमत, साधुमान्, साधुमती। वधू>वधूमद, बधूमान् वधूमती / गरुत्>गरुत्मत, गरुत्मान् (मरुत् = पक्ष जिसके हैं अर्थात् पक्षी)। धन >धनवद, धनवान् धनवती। गुणगुणवत्, गुणवान्, गुणवती। यशस् >यशस्वत्, यशस्वान्, यशस्वती / लक्ष्मी> लक्ष्मीवत्, लक्ष्मीवान, लक्ष्मीवती / अर्थ > अर्थवत्, अर्थवान् ( धनवान् ), अर्थवती। शान शानवत्, ज्ञानवान्, ज्ञानवती। बल बलवद, बलवान्, बलवती। क्षमा> क्षमावत्, क्षमावान्, क्षमावती। विद्या विद्यावत्, विद्यावान, विद्यावती / पयस्> पयस्वत्, पयस्वान्, पयस्वती। भास्>भास्वद, भास्वान्, भास्वती। नोट--यदि शब्द के अन्त में या उपधा में 'अ', 'आ' या 'म' हो तो 'मत' को 'वत्' होता है। परन्तु भूमिमान्, यवमान्. कृमिमान् और उर्मिमान में नहीं हुआ। (ख) इनि (इन्) प्रत्ययान्त रूप-अकारान्त और वीहि आदि शब्दों से 'इनि' प्रत्यय होता है। इनके रूप पुं० में 'करिन्' और स्त्री० में 'नदी' की तरह बनेंगे। जैसे-दण्ड> दण्डिन् >दण्डी (पुं०), दण्डिनी (स्त्री०)। सुख>सुखिन >सुखी (पुं०), सुखिनी (स्त्री०)। ज्ञान >शानिन् (शानी), धन >धनिन् (धनी), मावा>मायिन ( माथी ), शिखा शिखिन् (शिखी), धर्म धर्मिन् (धर्मी), दन्त>दन्तिन् ( दन्ती), अर्थ> अधिन् ( अर्थी याचक), विवेक> विवेकिन (विवेकी), उत्साह > उत्साहिन् ( उत्साही), प्रणय > प्रणयिन् (प्रणयी)। (5) विभक्त्यर्थक ---तसिल, बल, ह और अत् पञ्चमी आदि विशक्तियों का अर्थ 'श्रकट करने के लिए कुछ शब्दों से 'तसिल्' आदि प्रत्यय होते हैं। जैसे (क) पञ्चम्यर्थक तमिल्' (तस्)"-'किम्' आदि सर्वनाम शब्दों से तथा 1. वही। 2. देखें, लघुसिद्धान्तकौमुदी 'तद्धितेषु प्राग्दिशीयाः' प्रकरण / 3. पञ्चम्यास्तसिन् / पर्यभिभ्यां च / 'अ० 5.3.7, 6. परि और अभि से 'लसिल्' प्रत्यय पञ्चमी के अर्थ में होता है। जैसे-किम् (क) >कृतः (कस्मात् = किससे), इदम् (इ)>इत: (अस्मात् - इससे ), एतर (अ)>अतः ( एतस्मात् = इससे ), अदस् ( अमु )> अमुतः (अमुष्मात् उससे); यत् >यतः ( यस्मात् -जिससे ), बहु>बहुतः (बहोः बहुतों से), परि>परितः (सब ओर ), सर्व> सर्वतः ( सर्वस्मात् ), उभग > उभयतः, अभि> अभितः (दोनों ओर से)। अन्य उदाहरण-विश्वतः, एकतः, अन्यतः, पूर्वतः ( अग्रतः, दक्षिणतः, उत्तरतः, मत्तः ( मुझसे), त्वत्तः (तुझये), अस्मत्तः (हमसे), युष्मत्तः (तुमसे), इतः / / (ख) सप्तम्यर्थक 'त्रल' () प्रत्यय-'किस्' आदि शब्दों से सप्तमी के अर्थ में बल् (त्र) प्रत्यय होता है। जैसे-किम् (कु)>कुत्र ( कस्मिन्-किसमें, कहाँ ), यत् >यत्र ( यस्मिन् - जिसमें, जहाँ ), तत् >तत्र (तस्मिन् = उसमें, वहाँ), बहु> बहुत्र (बहुषु - बहुतों में), एतद् (अ)> अत्र (एतस्मिन्) / अन्य उदाहरणउभयत्र, एकत्र, सर्वत्र, अन्यत्र, परत्र, अपरत्र / (ग) सप्तम्यर्थक 'ह' और 'अत्' (अ) प्रत्यय -इदम् (इ)+ह-इह (बस्मिन् - इसमें, यहाँ ) / किम् ( क्व) + अत् - क्व ( कुत्र = कहाँ)। - (6) कालाद्यर्थक-दा, हिल, थाल और थमु (क) दा-सतम्यन्त सर्व आदि शब्दों से समय अर्थ में / जैसे- सर्व+दा = सर्वदा ( सर्वस्मिन् काले-सब समय), सर्व (स)+ दा-सदा ( सर्वस्मिन् काले), एक> एकदा (एकस्मिन् काले एक समय), किम् (क) >कदा (किस समय), य>यदा, तत्>तदा, अन्य > अन्यदा। (ख) हिल (हि)-सप्तम्यन्त से काल अर्थ में -'इदम् ( एत)>एतहि ( अस्मिन् काले- इस समय, अब / एतहि के स्थान पर 'अधुना' और 'इदानीम्' का भी प्रयोग होता है) किम् (क)> कहिं ( कदा, कस्मिन् काले), बत् >यहि (यदा, यस्मिन् काले), तद>तहि (तदा ), एतद् (एत् )>एतहि ( एतस्मिन् काले। इदम् से भी यही रूप बनता है)। (ग) थाल (था)-प्रकार अर्थ में। जैसे-तद् (त)>तथा (तेन प्रकारेण- उस प्रकार से ), यत् >यथा (येन प्रकारेण जिस प्रकार से), सर्वथाः उभयथा, अन्यथा / (घ) थमु (थम्)-प्रकार अर्थ में इदम्, एतद् और किम् 1. सप्तम्याखल् / अ०५.३.१०. . 2. इदमो हः / किमोऽत् / क्वाऽति / अ०५.३.११, 12, 7.2.105 / 3. सर्वैकाऽन्यकियत्तदः काले दा। अ० 5.3.15. .4 इदमो हिल् / अनद्यतने हिलन्यतरस्याम् / अ०५.३.१६५.२.२१. 5. अधुना / दानीं च। अ०५.३.१७-१८. 6..प्रकारवचने थाल् / अ०५.३.२३.. 7. इदमस्थमुः / किमश्च / 05.3.24,35 / एतदोऽपि वाच्यः (वा०)।