________________ तारा बुक एजेन्सी प्रकार- कलांग प्रकाशकतारा बुक एजेन्सी रथयात्रा-गुरुबाग रोड कमच्छा, वाराणसी जीडाणा ) संशोधित और परिवर्द्धित पंचम संस्करण, 2003 ०प्रकाशक प्राक्कथन शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष् वेद के इन छ: अङ्गों में व्याकरण सबसे प्रधान है। व्याकरण को 'शब्दानुशासन' भी कहा जाता है क्योंकि इसमें शब्द की मीमांसा की जाती है (व्याक्रियन्ते व्युत्पाद्यन्ते शब्दाः अनेन इति न्याकरणम् ) / शब्दार्थ का यथार्थबोध व्याकरण के बिना संभव नहीं है। अतः कहा है -'हे पुष ! यद्यपि तुम बहुत नहीं पड़ते हो फिर भी व्याकरण पढ़ो जिससे 'स्वजन' ( अपना ) का 'श्वजन'- (कुत्ता) 'सकल' ( सम्पूर्ण .) का 'शकल (टुकड़ा) और 'सकृत्' ( एक बार ) का 'शकृत्' ( मल ) न हो जाए। संस्कृत भाषा के व्याकरण जैसा. गहन, सूत्रात्मक और तर्क-संगत व्याकरण संसार की किसी अन्य भाषा का उपलब्ध नहीं है / संस्कृत. व्याकरण का प्रारम्भिक रूप प्रातिशाख्यों में मिलता है। पश्चात् यास्क ( ई०पू० ८००)-कृत 'निरुक्त' में 'शब्दनिरुक्ति' का विवेचन मिलता है। यास्क ने सर्वप्रथम शब्दों की नाम (संज्ञा, सर्वनाम ) आख्यात (धातु और क्रिया), उपसर्ग और निपात ( च वा आदि) इन चार भागों विभक्त किया है। पाणिनि से पूर्व आपिशलि, काशकृत्स्न, शाकल्प, शाकटायन, इन्द्र आदि कई वैयाकरण हुए थे। पाणिनि प्रस्थान में संस्कृतध्याकरण को मूर्त रूप देने वाले निम्न तीन महान वैयाकरण प्रसिद्ध है। जिन्हें 'मुनित्रय' के नाम से जाना जाता है पाणिनि ( सूत्रकार--ई० पू० 300 से 2400 ई० पू० के मध्य ) सूत्रात्मक शैली में लिखित इनकी अष्टाध्यायी में लगभग 4000 सूत्र हैं जिन्हें आठ अध्यायों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक अध्याय में 4 पाद हैं। प्रथम में व्याकरणसम्बन्धी संज्ञायें तया परिभाषायें हैं / द्वितीय में समास तथा कारक हैं। तृतीय में कृत और तिङ् प्रत्यय हैं / चतुर्य और पश्चिम में शब्दों से होने वाले प्रत्यय ( सुप्, स्त्री तद्धित और समासान्त ) हैं / षष्ठ, सप्तम और अष्टम में सन्धि, आदेश और स्वर-प्रक्रिया से सम्बन्धित नियम हैं। भाषा-विज्ञान की दृष्टि से यह अनुपम ग्रन्थ है। कात्यायन ( वातिककार --300 ई० पू० के करीब )-इन का दूसरा नाम 1. छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽय पठ्यते / ज्योतिषामयनं चक्षुनिरुक्तं श्रोत्रमुच्यते // शिक्षा प्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम् / तस्मात् साङ्गमधीत्यैव ब्राह्मलोके महीयते / / पाणिनीय-शिक्षा, 41-42 / 2. यद्यपि बहु नाधीषे पठ पुत्र तथापि व्याकरणम् / स्वजन: श्वजनो मा भूत् सकल: शकल: सकृच्छकृत् / / मूल्य : 50.00 मुद्रकतारा प्रिंटिंग वर्क्स फणिका रथयात्रा-गुरुबाग रोड, वाराणसी फोन : (0542) 2420291 गणमा