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________________ 5. पद श्रुत : आचारांग सूत्र के 18,000 पद हैं, उनमें से किसी एक पद का ज्ञान, पद श्रुत कहलाता है / / 6. पद समास श्रुत : आचारांग आदि के 1 से अधिक पदों के ज्ञान को पदसमास श्रुत कहते है / 7. संघात श्रुत : गति, इन्द्रिय आदि 14 मूल मार्गणाओं में से किसी भी एक मार्गणा के भेद के ज्ञान को संघातश्रुत कहते हैं / जैसे गति मार्गणा के चार भेद हैं 1) देवगति 2) नरकगति 3) तिर्यंचगति और 4) मनुष्य गति / इनमें से किसी भी प्रभेद के ज्ञान को संघातश्रुत कहा जाता है / 8. संघात समास श्रुत : गति आदि 14 मूल मार्गणाओं में से किसी भी एक मार्गणा के एक से अधिक प्रभेद के ज्ञान को संघात समास श्रुत कहते हैं / जैसे चार गतियों में एक से अधिक गति का ज्ञान / 9. प्रतिपत्ति श्रुत : गति आदि 14 मूल मार्गणाओं में से किसी भी एक मार्गणा के संपूर्ण ज्ञान को प्रतिपत्ति श्रुत कहा जाता है / 10. प्रतिपत्ति समास श्रुत : एक से अधिक मार्गणाओं के संपूर्ण ज्ञान को प्रतिपत्ति समास श्रुत कहते हैं | 11. अनुयोग श्रुत : सत्पद आदि द्वारा जीव आदि तत्त्वों के विचार को अनुयोग कहा जाता है। उदा. मोक्ष तत्त्व का विचार सत्पद आदि नौ द्वारों से हो सकता है, अतः सत्पद आदि नौ अनुयोग द्वार कहलाते हैं | उन नौ में से किसी भी एक द्वार के ज्ञान को अनुयोग श्रुत कहा जाता है | 12. अनुयोग समास श्रुत : सत्पद आदि एक से अधिक अनुयोग द्वार के ज्ञान को अनुयोग समास श्रुत कहा जाता है। 13. प्राभृत प्राभृत श्रुत : दृष्टिवाद नाम के बारहवें अंग में प्राभृत प्राभृत नाम का अधिकार है | उनमें से किसी एक का ज्ञान प्राभृत-प्राभृत श्रुत कहलाता कर्मग्रंथ (भाग-1) 188
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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