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________________ क्षिप्रग्राही और जो विलंब से पहिचान पाते हैं, उसे अक्षिप्रग्राही कहते हैं | 7-8 निश्रितग्राही-अनिश्रितग्राही निश्रित अर्थात् चिह्न और अनिश्रित अर्थात् चिह्न का अभाव / उदा. 1) किसी चिह्न को देखकर वस्तु का बोध होता हो उसे निश्रितग्राही कहते हैं / जैसे ध्वजा देखकर निश्चय करे कि 'यह जैन मंदिर होना चाहिए।' 2) तीव्र बुद्धिशाली व्यक्ति चिह्न को देखे बिना ही वस्तु को पहिचान ले उसे अनिश्रितग्राही कहते हैं-जैसे : 'ध्वजा देखे बिना ही निश्चय कर ले कि 'यह जैन मंदिर है।' 9-10 असंदिग्धग्राही-संदिग्धग्राही-असंदिग्ध अर्थात् संदेह रहित और संदिग्ध अर्थात् संदेह युक्त / जैसे शब्दों की आवाज सुनाई देने पर यह निश्चित करना कि 'यह मेघगर्जना ही है, सिंहनाद नहीं' यह असंदिग्धग्राही ज्ञान है / और शब्द सुनाई देने पर भी 'यह सिंहगर्जना है या मेघनाद ?' इस प्रकार का संदेह युक्त ज्ञान संदिग्धग्राही कहलाता है | 11. ध्रुवग्राही-अधुवग्राही-ध्रुवग्राही अर्थात् दीर्घकाल तक स्मृति रहना / अध्रुवग्राही अर्थात् समय व्यतीत होने पर भूल जाना / उदा. एक ही बार सुना हुआ भाषण हमेशा के लिए याद रह जाय, उसे धुवग्राही कहते हैं और अनेकबार सुनने पर भी याद नहीं रहना अथवा भूल जाना, उसे अध्रुवग्राही कहते हैं | इस प्रकार श्रोत्रेन्द्रियजन्य मतिज्ञान के 60 भेद हुए चक्षुरिन्द्रियजन्य मतिज्ञान के 48 भेद हुए घ्राणेन्द्रियजन्य मतिज्ञान के 60 भेद हुए रसनेन्द्रियजन्य मतिज्ञान के 60 भेद हुए स्पर्शनेन्द्रियजन्य मतिज्ञान के 60 भेद हुए मनोजन्य मतिज्ञान के 48 भेद हुए 336 भेद मतिज्ञान के उपर्युक्त 336 भेद श्रुत निश्रित कहलाते हैं | 1) श्रुत-निश्रित-मतिज्ञान : यहाँ श्रुत का अर्थ आगम ग्रंथ नहीं लेने का है, परंतु परोपदेश या आगम-ग्रंथ आदि से जो कुछ सुना-जाना गया हो वह कर्मग्रंथ (भाग-1) 81
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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