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________________ मतिज्ञान कारण है, जब कि श्रुतज्ञान कार्य है / मतिज्ञान सिर्फ वर्तमानकालग्राही है अर्थात् सिर्फ विद्यमान वस्तु में ही प्रवृत्त होता है, जब कि श्रुतज्ञान भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीनों विषयों में प्रवृत्त होता है। मतिज्ञान मूक है, जब कि श्रुतज्ञान वाचाल है | मतिज्ञान में शब्द का विचार नहीं होता हैं, जबकि श्रुतज्ञान में शब्द के अर्थ का चिंतन होता है / श्रुतज्ञान के बिना भी सिर्फ मतिज्ञान हो सकता है, जब कि मतिज्ञान बिना श्रुतज्ञान नहीं होता है / 3. अवधिज्ञान मन और इन्द्रियों की अपेक्षा नहीं रखते हुए सिर्फ आत्मा द्वारा रूपी द्रव्यों का जो बोध होता है, उसे अवधिज्ञान कहते हैं | 4. मनः पर्यव ज्ञान : मन और इन्द्रियों की सहायता बिना ढाई द्वीप में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय प्राणियों के मनोगत विचारों को जिस ज्ञान से जाना जाता है, उसे मनःपर्यव ज्ञान कहते हैं / संज्ञी पंचेन्द्रिय प्राणी जब किसी भी वस्तु का विचार करता है, तब वह अपने काययोग द्वारा आकाश प्रदेश में रहे मनोवर्गणा के पुद्गलों को अपनी ओर खींचकर उन.पुद्गलों को चिंतनीय वस्तु के अनुरूप परिणत करता है / किसी आकार में परिणत हुए उन पुद्गल द्रव्यों को मनःपर्यवज्ञानी स्पष्ट रूप से देख सकता है | __संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव जिस वस्तु संबंधी विचार करता है, उस वस्तु के आकार में परिणत मनोद्रव्य को ही मनःपर्यवज्ञानी प्रत्यक्ष जान सकता है, परंतु वस्तु को नहीं / वस्तु का ज्ञान तो अनुमान से होता है | 5. अवधिज्ञान व मनःपर्यवज्ञान में अंतर : अवधिज्ञान रूपी द्रव्यों को स्पष्ट जानता है, जब कि मनःपर्यवज्ञानी मनोद्रव्य को स्पष्ट जानता है। * अंगुल के असंख्यातवें भाग से लेकर चौदह राजलोक में रहे सभी रुपी द्रव्यों का बोध अवधिज्ञान से हो सकता है, जब कि मनःपर्यवज्ञान से सिर्फ ढाई द्वीप में रहे संज्ञी जीवों के मनोगत भावों को ही जान सकते है / कर्मग्रंथ (भाग-1)) 073
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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