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________________ 5) जिस कर्म के उदय से जीव एक भव में जीता है और उस कर्म के क्षय से जीव मृत्यु प्राप्त करता है उसे आयुष्य कर्म कहते हैं / 6) जिस कर्म के उदय से जीव नाना प्रकार के आकार आदि धारण करता है, उसे नाम कर्म कहते हैं। 7) जिस कर्म के उदय से जीव उच्च या नीच कुल में जन्म ले, उसे गोत्र कर्म कहते हैं। 8) जो कर्म आत्मा की दान आदि शक्तियों का घात करता है, उसे अंतराय कर्म कहते हैं। इन आठ कर्मों में चार घाती कर्म हैं और चार अघाति कर्म हैं / जो कर्म आत्मा के मूलगुण ज्ञान, दर्शन, वीतरागता और अनंतवीर्य का घात करते हैं उन्हें घातिकर्म कहते हैं और जो मूलगुण का घात नहीं करते हैं, उन्हें अघाति कर्म कहते हैं / ज्ञानावरणीय कर्म के 5 भेद हैं / दर्शनावरणीय कर्म के 9 भेद हैं / वेदनीय कर्म के 2 भेद हैं / मोहनीय कर्म के 28 भेद हैं | आयुष्य कर्म के 4 भेद हैं / नाम कर्म के 103 भेद हैं / अंतराय कर्म के 5 भेद हैं / इस प्रकार आठ कर्मों के कुल 158 भेद हुए | प्रतिकार करने में जो शक्ति चाहिए, एसच्ची उससे भी अधिक शक्ति सहन करने में चाहिए / किसी का सामना करना कोई बहादुरी नहीं है, एबहादुरी! पर परंतु किसी के अपकार को भी सहन कर लेना है उसी में सच्ची बहादुरी है / (कर्मग्रंथ (भाग-1)
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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