________________ अधीन बन जाती है, तब भयंकर से भयंकर पाप कर्मों का बंध कर लेती है | * स्कंदिलाचार्य महान् ज्ञानी और 500 शिष्यों के गुरुपद पर प्रतिष्ठित थे। पालक मंत्री ने उनको एवं उनके समस्त शिष्यों को घाणी में पील देने का आदेश दिया था / आचार्य भगवंत ने 499 शिष्यों को अंतिम निर्यामणा कराई और वे सब शुक्ल-ध्यान पर आरूढ़ होकर समस्त कर्मों का क्षय कर मोक्ष में चले गए | अब मात्र उनका एक ही शिष्य बालमुनि बाकी था / उन्हें बाल मुनि पर अत्यंत स्नेह था / अतः उन्होंने पालक मंत्री को कहा, 'बाल मुनि के पहले मुझे घाणी में पील दो, बाल मुनि की पीड़ा मुझसे देखी नहीं जाएगी / ' परंतु पालक मंत्री ने आचार्य भगवंत की इस बात को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया और उसने अपनी इच्छानुसार आचार्य भगवंत के देखते बाल मुनि को घाणी में पील दिया / देह से बाल होते हुए भी दृढ़ मनोबली बाल मुनि शुक्ल ध्यान पर आरूढ़ होकर मोक्ष में चले गए ।...परंतु अपनी इच्छा का स्वीकार न होने से स्कंदिलाचार्य एकदम आवेश में आ गए और उसी समय उन्होंने निदान कर लिया / वे मरकर देवलोक में पैदा हुए...और वहाँ उत्पन्न होने के बाद तुरंत ही उन्होंने उस नगर में आग लगा दी / राजा व मंत्री भी आग में झुलस कर खत्म हो गये / क्रोधावेश में उन्होंने हजारों निर्दोष व्यक्तियों को भी मार डाला परिणामस्वरूप उन्होंने भयंकर पाप कर्म का बंधकर अपना दीर्घ संसार खड़ा कर लिया / * अग्निशर्मा तापस ने अपने जीवन में लाखों वर्ष तक मासक्षमण के पारणे मासक्षमण किए थे, परंतु क्रोधावेश में वह सब कुछ हार गया और क्रोध के फलस्वरूप उसने अपना अनंत संसार खड़ा कर लिया था | * क्रोध से बँधे हुए पाप कर्म के फलस्वरूप ही तपस्वी महात्मा मरकर चंडकोशिक सर्प बन गए थे / ऐसे सैकड़ों दृष्टांत इतिहास के पन्नों पर अंकित हैं, अतः क्रोध पिशाच से सदैव दूर रहें / (कर्मग्रंथ (भाग-1), 464