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________________ वर्गणा के पुद्गल रहे हुए हैं / मिथ्यात्व , अविरति, प्रमाद, कषाय और योग रूप कारणों के सेवन से ये कार्मण-पुद्गल आत्मा की ओर खिंचे चले आते हैं / जिस प्रकार लोह चंबक के कारण आसपास में रहे लोहकण खिंच कर चले आते हैं, उसी प्रकार मिथ्यात्व आदि कारणों का सेवन करने से ये कार्मण वर्गणाएँ आत्मा की ओर स्वतः खिंचकर चली आती हैं / __मिथ्यात्व आदि हेतुओं के सेवन से आत्मा पर लगे कर्म परमाणुओं में ज्ञानादि गुणों पर आवरण लाने की तथा सुख-दुःख प्रदान करने की शक्ति पैदा होती है। जिस प्रकार तपे हुए लोहे के गोले के एक-एक कण के साथ अग्नि एकमेक हो जाती है अथवा दूध में पानी का मिश्रण करने पर दूध और पानी एकमेक हो जाते हैं, उसी प्रकार मिथ्यात्व आदि हेतुओं का सेवन करने पर वे कर्म परमाणु आत्मा के साथ एकमेक हो जाते हैं, उसी प्रक्रिया को कर्म का बंध कहा जाता है / कर्मबंधन के हेतु 1. मिथ्यात्व-कर्मबंधन के हेतुओं में मिथ्यात्व सबसे अधिक प्रबल हेतु है | जब तक आत्मा में मिथ्यात्व होता है, तभी तक अन्य हेतु प्रबल होते हैं, मिथ्यात्व के मंद होने के साथ अथवा नष्ट होने के साथ अन्य हेतुओं का जोर घट जाता है / पापस्थानकों के जो 18 भेद बतलाए गए हैं, उनमें 18वाँ पापस्थानक 'मिथ्यात्व' सबसे अधिक बलवान है | जब तक आत्मा में मिथ्यात्व जीवित रहता है, तभी तक प्राणातिपात आदि पापों का जोर रहता है, मिथ्यात्व के कमजोर होने के साथ ही सत्रह पापों का जोर एकदम घट जाता है | मिथ्यात्व के त्याग के अभाव में सत्रह पापों का किया हुआ त्याग भी अत्याग ही है। मिथ्यात्व अर्थात् बुद्धि का विपर्यास / जिस प्रकार शराब के नशे में चकचूर व्यक्ति को माता-बहिन-पत्नी तथा अपने-पराए का कोई विवेक नहीं होता है, उसी प्रकार मिथ्यात्व के उदय में व्यक्ति को सत्य-असत्य, हेय-उपादेय का कोई भान या विवेक नहीं (कर्मग्रंथ (भाग-1) RESS 59
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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