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________________ प्रकार संख्य, असंख्य और अनंत परमाणुओं के संयोग से बने हुए स्कंध भी अनंत हैं। पुद्गलों की इन वर्गणाओं को औदारिक आदि आठ वर्गणाओं में विभाजित कर सकते हैं / इन सब वर्गणाओं में आठवीं कार्मण वर्गणा है / अनंत-अनंत कार्मण परमाणुओं के संयोग से बने हुए ये कार्मण-स्कंध चक्षु द्वारा देखे नहीं जा सकते हैं। जिस प्रकार लोह चुंबक अपने आसपास के क्षेत्र में रहे लोहकणों को अपनी ओर आकर्षित करता है / चुंबक में रही हुई चुंबकीय शक्ति के अनुपात में ही लोहकण आकर्षित होते हैं / यदि चुंबक में चुंबकीय शक्ति अल्प होगी तो वह लोहे के अल्प कणों को अपनी ओर आकर्षित करेगा और चुंबक में चुंबकीय शक्ति अधिक होगी तो वह अधिक प्रमाण में लोहकणों को अपनी ओर आकर्षित करेगा। इसी प्रकार इस चौदह राजलोक में सर्वत्र कार्मण वर्गणा के पुद्गल स्कंध रहे हए हैं / ये कार्मण वर्गणाएँ उसी आत्मा को चोंटती हैं, जो आत्मा राग-द्वेष करती है / जिस आत्मा में राग-द्वेष की स्निग्धता रही हुई है, उसी आत्मा की ओर ये कार्मण वर्गणा के पुद्गल आकर्षित होते हैं। आत्मा के साथ जब ये कार्मण वर्गणाएँ चिपकती हैं, तब उनका नाम बदल जाता है / उसके बाद उन्हें 'कर्म' कहा जाता है / बस, जगत् की समस्त विचित्रताओं का मुख्य आधार यह 'कर्म' ही है / आत्मा के साथ लगे हुए कर्म जब उदय में आते हैं, तब ये ही कर्म आत्मा को सुख-दुःख आदि प्रदान करते हैं। यद्यपि जैन दर्शन के अनुसार किसी भी घटना के बनने में कर्म के सिवाय काल, स्वभाव, भवितव्यता और पुरुषार्थ को भी कारण माना गया है / फिर भी जगत् की इस विचित्रता में कर्म को प्रधान कारण माना जा सकता है / इस जगत् में जितनी अनंतानंत आत्माएँ हैं, उन आत्माओं को मुख्यतया दो विभागों में बाँट सकते हैं-भव्य और अभव्य / भव्य आत्मा अर्थात् जिस आत्मा में मोक्षगमन की योग्यता है / अभव्य आत्मा अर्थात् जिसमें मोक्षगमन की योग्यता नहीं है | कर्मग्रंथ (भाग-1)) 55
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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