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________________ यदि निष्प्रयोजन ही ईश्वर इस विश्व का सर्जन करे तो मूर्खता ही सिद्ध होती है, क्योंकि समझदार व्यक्ति बिना किसी प्रयोजन कुछ भी प्रवृत्ति नहीं करता है / 2) यदि ईश्वर सशरीरी है तो उसके शरीर का निर्माण किसने किया ? 3) ईश्वर यदि अशरीरी (निराकार) है तो स्वयं निराकार होते हुए साकार विश्व की रचना कैसे की ? 4) ईश्वर को हम दयालु मानते हैं तो वह दयालु ईश्वर इस विश्व में हिंसक, क्रूर, निर्दय, चोर, परस्त्री-लंपट जैसे खराब व्यक्तियों को क्यों पैदा करता है ? 5) इस संसार में गुनहगार व्यक्ति को सजा होती है तो यह सजा करनेवाला कौन ? यदि सजा करनेवाला ईश्वर है तो उस सर्व शक्तिमान् ईश्वर ने गुनहगार को गुनाह करने से क्यों नहीं रोका ? यदि गुनाह करने की प्रेरणा भी वो ही ईश्वर देता हो तो उस ईश्वर को न्यायाधीश (न्यायप्रिय) कैसे कहा जाएगा ? 6) यदि वह ईश्वर जीवों को अपने-अपने कर्म के अनुसार सजा करता हो तो 'सजा करने में ईश्वर की स्वतंत्रता कहाँ रही ?' कर्म के अनुसार सजा करने पर तो 'कर्म की ही प्रधानता रहेगी-ईश्वर की नहीं | इससे यही सिद्ध होता है कि व्यक्ति जैसा कर्म करेगा उसको वैसा ही लाभ या हानि होगी।' 7) इस संसार में कई लोग सुखी हैं, कई लोग दुःखी हैं तो दयालु ऐसा ईश्वर जीवों को दुःख क्यों देता है ? दयालु ईश्वर का तो यह कर्तव्य है कि वह सबको सुखी बनाए, कभी भी किसी को दुःखी न बनाए / 8) ईश्वर ने जब सृष्टि का सर्जन किया तब शुद्ध आत्माओं को पैदा किया या अशुद्ध आत्माओं को ? यदि शुद्ध आत्माओं को पैदा किया तो वे आत्माएँ अशुद्ध कैसे बनीं ? सर्व शक्तिमान् ईश्वर ने उन आत्माओं को अशुद्ध बनने से क्यों नहीं रोका ? यदि ईश्वर ने अशुद्ध आत्माओं को पैदा किया तो उन आत्माओं में यह अशुद्धि कहाँ से आई ? आत्मा में बिना कारण ही अशुद्धि आ जाय तब तो उनके पुनः शुद्ध होने का सवाल ही नहीं रहेगा और कार्य-कारण की व्यवस्था ही लुप्त हो जाएगी / (कर्मग्रंथ (भाग-1) EX18
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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