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________________ 34 ह. देव आयुष्य-नामकर्म के हेतु अविरयमाई सुराउ, बाल तवोऽकामनिज्जरो जयइ / सरलो अगार विल्लो, सुहनामं अन्नहा असुहं / / 59 / / शब्दार्थ अविरयमाई अविरत आदि, सुराउ-देव आयुष्य, बालतवो= बालतपवाला, अकाम निज्जरो=अकाम निर्जरावाला, जयइ उपार्जित करता है, सरलो सरल, अगारविल्लो गारव रहित, सुहनामं शुभ नामकर्म, अन्नहा=विपरीत स्वभाववाला, असुहं हंशुभ नामकर्म को | गाथार्थ अविरत सम्यग्दृष्टि आदि, बाल तपस्वी, अकाम निर्जरा करनेवाला देव आयुष्य का बंध करता है। विवेचन 1. देव आयु बंध के हेतु : अविरत सम्यग्दृष्टि आदि तथा बालतप, अकामनिर्जरा करने वाला जीव, देवायु का बंध करता है / जो मनुष्य परमात्मा की पूजा करता है, समता रस में लीन बनकर प्रभु का ध्यान करता है, शोक-संताप दूर कर साधु-साध्वी को शुद्ध आहार का दान करता है, गुणीजन पर राग करता है, व्रत ग्रहण कर उनका पालन करता है, यतना पूर्वक वर्तन करता है, जीवों पर अनुकंपा करता है और तीन काल गुरुवंदन आदि करता है, वह व्यक्ति वैमानिक आदि देवगति के आयुष्य का बंध करता है। जो पंचाग्नि तप सहन करता है, वन में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करता है, कष्ट सहन कर देह का दमन करता है-वह भी देवायु का बंध करता है | देव आयुष्य का बंध एक से सातवें गुणस्थानक तक होता है और AGar (कर्मग्रंथ (भाग-1)) 2033
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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