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________________ 2. जीवों की हिंसा करने से : कालसौरिक कसाई प्रतिदिन 500 भैंसों का वध करता था, इसके फलस्वरूप उसने तीव्र अशाता वेदनीय कर्म का बंध किया और मरकर 7वीं नरक में चला गया / 3. क्रोधादि कषाय करने से : अग्निशर्मा , कंडरीक मुनि, स्कंदिलाचार्य आदि ने क्रोध कर भयंकर अशाता वेदनीय का बंध किया था, परिणामस्वरूप उन्हें अनेक भवों तक दुर्गति के भयंकर दुःख सहन करने पड़े थे / 4. ग्रहण किए व्रतों का भंग करने से भी अशाता वेदनीय कर्म का बंध होता है। वेदनीय कर्मबंध की स्थिति प्रज्ञापना सूत्र आदि में शाता वेदनीय की जघन्य स्थिति 12 मुहूर्त की कही गई है, वह सांपरायिक बंध जानना चाहिए / शाता वेदनीय का सांपरायिक बंध दसवें गुणस्थानक तक है | ग्यारहवें-बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में भी योगजन्य शाता वेदनीय का बंध होता है, परंतु उसकी स्थिति मात्र तीन समय की होती है / वेदनीय कर्म के बंध की जघन्य स्थिति 12 मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटि सागरोपम है / 11 सत्य पभान समय हाथ में होता है तब सत्य समझ में नहीं आता है और जब समय हाथ से निकल जाता है तब सत्य समझ में आता है जीवन की स्वस्थ अवस्था तक जीवन की क्षणभंगुरता का सही भान नहीं होता है और जब आयुष्य का दीप बुझने की तैयारी में होता है, तब सत्य का भान होता है कि 'यह जीवन क्षणभंगुर है / ' Tol कर्मग्रंथ (भाग-1) 4197
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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