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________________ ह वेदनीय कर्म बंध के कारण ............................. गुरुभत्ति खंति करुणा, वय जोग कसायविजय दाण जुओ / दढ धम्माइ अज्जइ, सायमसायं विवज्जयओ / / 55 / / शब्दार्थ गुरुभत्ति-गुरु की भक्ति, खंति क्षमा, करुणा=दया, वय-व्रत, जोग-योग, कसायविजय कषाय पर जय, दाणजुओ=दान युक्त, दढ धम्माइ-दृढ़धर्मी आदि, अज्जइ-उपार्जन करता है, सायं=शाता वेदनीय, असायं=अशातावेदनीय , विवज्जयओ=इससे विपरीत | गाथार्थ गुरु भक्ति , क्षमा, करुणा, व्रत, योग, कषायविजय, दान देने और धर्म में स्थिर रहने से शाता वेदनीय का बंध होता है और इससे विपरीत प्रवृत्ति करने से अशाता वेदनीय का बंध होता है / विवेचन श्रीपाल राजा ने पूर्व भव में मुनि का अपमान आदि कर अशाता वेदनीय कर्म का बंध किया था, जिस कर्म के उदय के फलस्वरूप श्रीपाल कुँवर को बचपन में ही पिता का वियोग सहन करना पड़ा, राज्य से भ्रष्ट होना पड़ा और बचपन में ही कोढ़ रोग से ग्रस्त होना पड़ा / * मलयासुन्दरी ने पूर्व जन्म में अशाता वेदनीय कर्म का तीव्र बंध किया था / जिसके फलस्वरूप उसे अपने जीवन में अनेक बार मरणांत कष्ट सहन करने पड़े थे। * महासती कलावती ने पूर्व जन्म में पोपट के पंख काट दिये थे, जिसके परिणामस्वरूप अगले जन्म में उसे भयंकर जंगल में छोड़ हाथ काट दिए और प्रसूति की भयंकर पीड़ा सहन करनी पड़ी। AGE कर्मग्रंथ (भाग-1) = 195 195 KARTED
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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