________________ 31 ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय बंध के हेतु) पडिणीअत्तण निव, उवघाय पओस अंतराएणं / अच्चासायणयाए, आवरण दुगं जिओ जयइ / / 54 / / शब्दार्थ पडिणी अत्तण प्रत्यनीकपना, निह्नव=छिपाना, उवघाय नष्ट करना, पओस-द्वेष करना, अंतराएणं=अंतराय करने से, अच्चासायणयाए अति आशातना करने से, आवरण दुगं=दोनों आवरण, जिओ=जीव, जयइ-उपार्जित करता है / विवेचन मिथ्यात्व , अविरति, प्रमाद, कषाय और योग, ये कर्मबंध के साधारण कारण हैं, इस गाथा में ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्मबंध के विशेष हेतु बताए हैं / जिन हेतुओं से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है, उन्हीं हेतुओं से दर्शनावरणीय कर्म का भी बंध होता है | 1) प्रत्यनीक : ज्ञान ज्ञानी और ज्ञान के साधनों के प्रति विपरीत भाव रखना, दुष्ट भाव रखना, उसे प्रत्यनीक कहते हैं / ज्ञान का गर्व करना, अकाल समय में स्वाध्याय करना, पढ़ने में आलस करना, स्वाध्याय आदि का अनादर करना, झूठा उपदेश देना, सिद्धांत विरुद्ध बोलना, ज्ञानी के वचन पर श्रद्धा न करना, ज्ञानी का अपमान करना आदि करने से ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म का बंध होता है | 2) निह्नव : अभिमान के कारण ज्ञानदाता गुरु के नाम को छुपाना / जैसे 'किसी के पास अध्ययन किया हो फिर भी कहना-'मैंने तो उनके पास अध्ययन नहीं किया है / ' कर्मग्रंथ (भाग-1) 11930