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________________ सिराइ मस्तक आदि, सुहं शुभनाम कर्म के उदय से , सुभगाओ=सौभाग्य नामकर्म के उदय से , सव्वजण इट्ठो सभी लोगों को प्रिय ! गाथार्थ प्रत्येक नामकर्म के उदय से जीवों के अलग-अलग शरीर होते हैं | स्थिर नामकर्म के उदय से शरीर में दाँत, हड्डियाँ आदि स्थिर होते हैं | नाभि ऊपर के शरीर के अवयव शुभ हों, वह शुभ नामकर्म का उदय है और जिसके उदय से जीव सभी को प्रिय लगे, वह सुभग नामकर्म है | विवेचन 4. प्रत्येक नामकर्म : जिस कर्म के उदय से एक शरीर का स्वामी एक ही जीव हो, उसे प्रत्येक नामकर्म कहते हैं / 5. स्थिर नामकर्म : जिस नामकर्म के उदय से जीव के दाँत, हड्डी, ग्रीवा आदि शरीर के अवयव स्थिर हों उसे स्थिर नामकर्म कहते हैं / 6. शुभ नामकर्म : जिस नामकर्म के उदय से जीव के शरीर में नाभि से ऊपर के अवयव शुभ प्राप्त हों, उसे शुभ नामकर्म कहते हैं / 7. सुभग नामकर्म : जिस नामकर्म के उदय से जीव किसी पर उपकार नहीं करने पर भी और किसी प्रकार का संबंध नहीं होने पर भी सभी को प्रिय लगते हों उसे सुभग नामकर्म कहते हैं | सुसरामहुर सुह झुणी, आइज्जा सबलोअ गिज्झवओ / जसओ जसकित्तीओ, थावरदसगं विवज्जत्थं / / 51 / / शब्दार्थ __सुसरा=सुस्वर नामकर्म के उदय से, महुर=मधुर, सुह झुणी=सुखदायी ध्वनि, आइज्जा आदेय नामकर्म के उदय से, सबलोअ सभी लोगों को , गिज्झ=ग्रहण करने योग्य, वओ वचनवाला, जसओ=यशनाकर्म के उदय से, जस-कित्तीओ=यश और कीर्ति, थावर दसगं स्थावर दशक, विवज्जत्थं विपरीत अर्थवाला। गाथार्थ सुस्वर नामकर्म के उदय से जीव मीठी और सुखदायी आवाज वाला (कर्मग्रंथ (भाग-1) 188
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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