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________________ विभूषित बनती है | समवसरण में बैठकर तीर्थंकर परमात्मा भव्य जीवों को धर्म का बोध देते हैं / देव-देवेन्द्र और चक्रवर्ती भी इनकी पूजा करते हैं | त्रस-दशक निर्माण-उपघात नामकर्म अंगोवंग निअमणं, निम्माणं कुणइ सुत्तहार समं / उवघाया उवहम्मइ, स-तणुवयव-लंबिगाईहिं ||48 / / शब्दार्थ अंगोवंग अंगोपांग, निअमणं नियमितपना, निम्माणं निर्माण नामकर्म, कुणइ करता है, सुत्तहार समं सुथार के समान, उवघाया उपघात नामकर्म के उदय से, उवहम्मइ=नष्ट होते हैं, सतणु स्वयं का शरीर, वयवलंबिगाइहिं= अवयव, लंबिका आदि / गाथार्थ __ निर्माण नामकर्म सुथार की तरह शरीर के अंग-उपांग आदि को यथायोग्य स्थान में व्यवस्थित करता है / उपघात नाम कर्म के उदय से जीव अपने शरीर की अवयवभूता लंबिका यानी छठी अंगुली आदि से क्लेश पाता है | विवेचन शास्त्र में अंगोपांग नामकर्म को नौकर एवं निर्माण नामकर्म को सुथार की उपमा दी है | नौकर तुल्य अंगोपांग नामकर्म अंग, उपांग और अंगोपांग तैयार कर देता है, परंतु उन अवयवों को व्यवस्थित करने का काम निर्माण नामकर्म करता है। स्वयं के ही अवयवों से स्वयं को ही पीड़ा हो, उसे उपघात कहते हैं, उसका कारण उपघातनाम कर्म है / प्रतिजिह्वा चौरदांत (ओठ के बाहर निकले हुए दाँत) लंबिका (छठी अंगुली) आदि स्वयं के अवयवों से जीव स्वयं दुःखी होता है | बितिचउ पणिंदिय तसा, बायरओ बायरा जिया थूला / निय नियपज्जतिजुया, पज्जत्ता लद्धिकरणेहिं / / 49 / / कर्मग्रंथ (भाग-1)) 185 :
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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