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________________ जलणे अग्निकाय का शरीर, जं क्योंकि, उसिण फासस्स-उष्ण स्पर्श को, तहिं उसमें, लोहिअ वण्णस्स लालवर्ण का , उदउ उदय, त्ति इस कारण / गाथार्थ __आतप नाम कर्म के उदय से जीव का अंग ताप युक्त होता है, इसका उदय सूर्य मंडल के पार्थिव शरीर में होता है, परंतु अग्निकाय जीवों को नहीं होता है, उन्हें उष्ण स्पर्श और लोहितवर्ण नाम कर्म का उदय होता है | 4. आतप नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का अपना शरीर शीत होने पर भी उष्ण प्रकाश देता हो, उसे आतप नामकर्म कहते हैं, इस आतप नामकर्म का उदय सूर्य बिंब के नीचे रहे बादर पृथ्वीकाय के जीवों को होता है, इन जीवों के सिवाय सूर्यमंडल के अन्य जीवों को आतप नामकर्म का उदय नहीं होता है / आतप नामकर्म का उदय अग्निकाय के जीवों को भी नहीं होता है, क्योंकि इस कर्म का उदय उन्हीं जीवों को होता है, जिनका स्वयं का शरीर ठण्डा हो और उनका प्रकाश उष्ण हो / उद्योत-नामकर्म अणुसिण पयासरूवं, जियंगमुज्जोयए इहुज्जोया / जइ देवुत्तर विक्किय-जोइस खज्जोय माइव्व ||46 / / शब्दार्थ अणुसिण-शीत, पयासरूवं प्रकाश रूप, जियंग-जीवों का अंग, उज्जोयए-उद्योत करता है, जइ यति, देवुत्तर विक्किय=देव द्वारा किया वैक्रिय , जोइस ज्योतिष, खज्जोय खद्योत , आइब्व=आदि की तरह / गाथार्थ साधु और देवों के उत्तर वैक्रिय शरीर, चंद्र, तारा आदि ज्योतिष तथा जुगनू के प्रकाश की तरह उद्योत नामकर्म के उदय से जीवों का शरीर शीत प्रकाश रूप उद्योत करता है / विवेचन 5. उद्योत नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव अपने शरीर द्वारा कर्मग्रंथ (भाग-1) 6183
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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