________________ शब्दार्थ समचउरंसं समचतुरस्त्र , निग्गोह-न्यग्रोध, साइ-सादि, खुज्जाइ= कुब्ज, वामणं वामन , हुंडं हुंडक, वण्णा वर्ण, किण्ह काला, नील-हरा, लोहिअ लाल , हलिद्द-पीला, सिआ श्वेत ! गाथार्थ समचतुरस्त्र , न्यग्रोध, सादि, कुब्ज, वामन और हुंडक ये संस्थान नामकर्म के तथा कृष्ण, नील, लाल, पीला और श्वेत ये वर्ण नामकर्म के भेद विवेचन छह संस्थान : शरीर के आकार को संस्थान कहते हैं / जिस कर्म के उदय से संस्थान की प्राप्ति हो उसे संस्थान नाम कर्म कहते हैं | मनुष्य आदि में जो शारीरिक विभिन्नताएँ और आकृति में विविधताएँ दिखाई देती हैं, उसका कारण संस्थान नाम कर्म है / संस्थान नामकर्म के छह भेद हैं ___ 1. समचतुरस्र संस्थान नाम कर्म : सम-समान, चतुर-चार तथा अस्त्रकोण | पर्यंकासन में बैठे हुए पुरुष के दो घुटने का अंतर, बाएँ स्कंध व दाएँ घुटने का अन्तर, दाएँ स्कंध और बाएँ घुटने का अंतर तथा आसन और ललाट का अंतर एक समान हो उसे समचतुरस्र संस्थान कहते हैं / जिस कर्म के उद्देश्य से इस प्रकार के संस्थान की प्राप्ति हो उसे समचतुरस्त्र संस्थान नामकर्म कहते हैं / 2. न्यग्रोध परिमंडल संस्थान नामकर्म : जिस कर्म के उदय से शरीर की आकृति न्यग्रोध के समान हो अर्थात् शरीर में नाभि से ऊपर के अवयव पूर्ण व व्यवस्थित हों तथा नाभि से नीचे के अवयव हीन हों, उसे न्यग्रोध परिमंडल नामकर्म संस्थान कहते हैं | 3. सादि संस्थान नामकर्म : जिस कर्म के उदय से नाभि से ऊपर के अवयव हीन हों और नाभि के नीच के अवयव पूर्ण व्यवस्थित हों, उसे सादि संस्थान नामकर्म कहते हैं / कर्मग्रंथ (भाग-1) E 176