________________ 14. तैजस तैजस बंधन नामकर्म : तैजस पुद्गलों को नए बँधे जा रहे तैजस पुद्गलों के साथ जोड़ने का काम करता है | 15. कार्मण कार्मण बंधन नामकर्म : कार्मण पुद्गलों को नए बँधे जा रहे कार्मण पुद्गलों के साथ जोडने का काम करता है / (7) छह संघयण संघयणमट्ठिनिचओ, तं छद्धा वज्जरिसह नारायं / तह रिसहनारायं, नारायं अद्धनारायं ||38 / / कीलिअ छेवढं इह, रिसहो पट्टो य कीलिआ वज्जं / उभओ मक्कडबंधो, नारायं इममुरालंगे ||39 / / शब्दार्थ ___ संघयणं संघयण, अट्टि निचओ हड्डी की रचना, तं-वह, छद्धा छह प्रकार, वज्जरिसहनारायं वज्रऋषभनाराच , रिसह नारायं ऋषभ नाराच, नारायं=नाराच , अद्धनारायं अर्धनाराच, कीलिअ-कीलिका , छेवटुं=सेवार्त, इह यहाँ, रिसहो=ऋषभ, पट्टो-पट्टा, कीलिआ कीली , वज्जं वज्र, उमओ=दोनों ओर, मक्कडबंधो मर्कटबंध, नारायं नाराच , इम यह, उरालंगे औदारिक शरीर में | गाथार्थ हड्डियों की रचना विशेष को संघयण कहते हैं / इसके वज्रऋषभ नाराच, ऋषभ नाराच, अर्ध नाराच, कीलिका और सेवार्त ये छह भेद हैं | इनमें ऋषभ का अर्थ पट्ट वेष्टन, वज्र का अर्थ कील और नाराच का अर्थ दोनों ओर मर्कट बंध समझना चाहिए / विवेचन संघयण नामकर्म : हड्डियों की रचना विशेष को संघयण कहते हैं / जिस नामकर्म के उदय से हड्डियाँ आपस में जुड़ती हैं, उसे संघयण नामकर्म कहते हैं / औदारिक शरीर के अतिरिक्त अन्य शरीर में हड्डियाँ नहीं होती हैं, इस कारण संघयण नाम कर्म का उदय औदारिक शरीर में ही होता है | कर्मग्रंथ (भाग-1)) 1174