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________________ नाम कर्म आत्मा का मूलभूत स्वभाव अरूपी है, अर्थात् आत्मा में किसी प्रकार का रूप-आकार नहीं है / यहाँ अरूपी से तात्पर्य आत्मा में वर्ण नहीं है, गंध नहीं है, रस नहीं है, स्पर्श नहीं और शब्द नहीं है, आकार नहीं है | जिस प्रकार नट मंडली का नायक, अपने अधीन काम करनेवाले नटों को विविध प्रकार के वेष आदि भजने के लिए बाध्य करता है, उसी प्रकार जो कर्म आत्मा को नरक आदि विविध गतियों में विविध प्रकार के आकार आदि धारण करने के लिए बाध्य करता है, उस कर्म का नाम, नामकर्म है / / इस कर्म के उदय से आत्मा नरक आदि गतियों में विविध प्रकार के आकार-पर्याय को धारण करती है | यह कर्म चित्रकार के समान है / जिस प्रकार चित्रकार अपनी मतिकल्पनानुसार विविध प्रकार के चित्र तैयार करता है, उसी प्रकार यह कर्म संसारी जीवों को विविध गति , जाति आदि के आकार प्रदान करता है | अपेक्षा भेद से नामकर्म के बयालीस, तिरानवै, एकसौ तीन और सडसठ भेद बताए गए हैं / | पिंड प्रकृति का स्वरूप गइ जाइ तणु उवंगा, बंधण संघायणानि संघयणा / संठाण वण्ण गंध रस, फास आणु पुब्बि विहग-गई / / 24 / / शब्दार्थ गइ=गति, जाइ=जाति, तणु शरीर, उवंगा-उपांग , बंधण बंधन, संघायणाणि=संघातन, संघयणा=संघयण, संठाण संस्थान, वण्ण वर्ण, गंध गंध, रस-रस, फास स्पर्श, आणुपूवि आनुपूर्वी, विहग-गइ-विहायोगति / गाथार्थ गति , जाति , शरीर, अंगोपांग , बंधन, संघातन, संघयण, संस्थान, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, आनुपूर्वी और विहायोगति ये 14 पिंड प्रकृति है | (कर्मग्रंथ (भाग-1) =1553
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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