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________________ संज्वलन कषाय का उदय हो तो सातिचार संयम का पालन हो सकता है, परंतु निरतिचार यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति नहीं होती है | कषायों की उपमा जलरेणु पुढवि पन्वय, राई सरिसो चउनिहो कोहो / तिणिसलया कटट्ठिय, सेलत्थंभोवमो माणो ||19 / / शब्दार्थ जल पानी, रेणु धूल , पुढवी पृथ्वी, पदय पर्वत , राई सरिसो रेखा समान , चउबिहो-चार प्रकार का , कोहो=क्रोध, तिणिसलया बेंत, कट्ठ-काष्ठ, डिअ हड्डी, सेलत्थंभो पर्वत का स्तंभ, उवमो जैसा, माणो=मान | गाथार्थ __संज्वलन आदि चार प्रकार के क्रोध जल में रेखा, धूल में रेखा, पृथ्वी में रेखा और पर्वत में रेखा समान हैं / संज्वलन आदि चार प्रकार का अभिमान वेत्रलता , काष्ठ, अस्थि और पत्थर के स्तंभ समान है / विवेचन इस गाथा में क्रोध और मान के मानसिक परिणाम (अध्यवसाय) को उपमा द्वारा समझाया गया है | जगत् में रहे कई पदार्थों के स्वरूप को स्पष्टतया समझाने के लिए उपमा का आश्रय लिया जाता है | __1) संज्वलन क्रोध : यह क्रोध पानी में खींची गई रेखा के समान है | जिस प्रकार पानी में रेखा खींचने पर वह रेखा तत्काल मिट जाती है, उसी प्रकार यह क्रोध तत्काल शांत हो जाता है। 2) प्रत्याख्यानावरण क्रोध : यह क्रोध धूल में खींची गई रेखा के समान है / जैसे धूल में खींची गई रेखा तुरंत नहीं मिटती है, लेकिन हवा का झोंका आने पर नष्ट होती है, बस, इसी प्रकार जिस क्रोध को शांत होने में थोड़ा समय लगता है, उसे प्रत्याख्यानावरण क्रोध कहते हैं / (कर्मग्रंथ (भाग-1))
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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