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________________ यह संज्वलन क्रोध आत्मा के यथाख्यात चारित्र गुण को रोकता है अर्थात् इस कषाय के उदय से आत्मा में यथाख्यात चारित्र पैदा नहीं होता है / किसी व्यक्ति पर क्रोध उत्पन्न हुआ हो और वह क्रोध चार मास तक शांत नहीं होता हो तो उस क्रोध को प्रत्याख्यानावरण क्रोध कहा जाता है। इस क्रोध के उदय में आत्मा मनुष्य गति के आयुष्य का बंध कर सकती है | इस कषाय के उदय काल में आत्मा सर्वविरति के प्रायोग्य अध्यवसायों को प्राप्त नहीं कर पाती है अर्थात् इस कषाय का उदय होने पर आत्मा सर्वविरति की स्थिति प्राप्त नहीं करती है। जो क्रोध एक वर्ष पर्यंत रहता हो उसे प्रत्याख्यानावरण क्रोध कहा जाता है, इस कषाय के उदयवाली आत्मा तिर्यंचगति के आयुष्य का बंध करती है, इस कषाय का उदय होने पर आत्मा देशविरति के योग्य अध्यवसाय प्राप्त नहीं कर पाती है। जो क्रोध जिंदगी पर्यंत रहता हो और जन्मांतर में भी साथ चलता हो उसे अनंतानुबंधी क्रोध कहा जाता है / इस क्रोध के अस्तित्व में आत्मा नरक गति के आयुष्य का बंध करती है / यह कषाय आत्मा के सम्यक्त्व गुण का घात करता है अर्थात् इस कषाय के उदयकाल में आत्मा सम्यक्त्व प्राप्त नहीं करती है / इतना ही नहीं, सम्यक्त्व विद्यमान हो तो वह भी चला जाता है / अनंतानुबंधी क्रोध की तरह अनंतानुबंधी मान, अनंतानुबंधी माया और अनंतानुबंधी लोभ की भी यही स्थिति, आयुष्य-बंध और गुण-घात समझना चाहिए / अप्रत्याख्यानावरण क्रोध की तरह अप्रत्याख्यानांवरण मान, अप्रत्याख्यानावरण माया और अप्रत्याख्यानावरण लोभ की भी वही 1 वर्ष की स्थिति, तिर्यंचगति के आयुष्य का बंध और देशविरति के गुण का घात समझना चाहिए। प्रत्याख्यानावरण क्रोध की तरह प्रत्याख्यानावरण मान, प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण लोभ की भी वो ही चार मास की स्थिति, मनुष्यगति के आयुष्य का बंध और सर्वविरति के गुण का घात समझना चाहिए / संज्वलन क्रोध की तरह संज्वलन मान , संज्वलन माया और संज्वलन लोभ की भी वही कर्मग्रंथ (भाग-1)) 140
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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