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________________ वेदनीय कर्म जिस प्रकार अनंत ज्ञान और अनंत दर्शन आत्मा के गुण हैं, उसी प्रकार अव्याबाध सुख भी आत्मा का मूल गुण है / ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म आत्मा के अनंत ज्ञान और अनंत दर्शन गुण पर आवरण लाते हैं / उसी प्रकार यह वेदनीय कर्म आत्मा के अव्याबाध सुख गुण को रोकता है / यह कर्म आत्मा को वास्तविक सुख का अनुभव करने नहीं देता है / इस कर्म के उदय से आत्मा इन्द्रियजन्य सुख-दुःख का अनुभव करती है / सानुकूल सामग्री मिलने पर आत्मा को जिस सुख की अनुभूति होती है, उसे शातावेदनीय कर्म कहते हैं। प्रतिकूल सामग्री मिलने पर आत्मा को जिस दुःख की अनुभूति होती है, उसे अशाता वेदनीय कर्म कहते हैं / वेदनीय कर्म के संपूर्ण क्षय से आत्मा में जो अव्याबाध सुख पैदा होता है, उस सुख और शाता वेदनीय कर्म के उदय से प्राप्त सुख में बहुत बड़ा अंतर है / शाता वेदनीय कर्म के उदय से प्राप्त होनेवाला सुख अल्पकालीन, दःखमिश्रित और नश्वर होता है, जब कि इस कर्म के क्षय से प्राप्त सुख शाश्वत , अव्याबाध और अक्षय होता है। इस कर्म के उदय से जीवात्मा को अनेक प्रकार की बीमारियाँ, यातनाएँ सहन करनी पड़ती हैं | ___ अशाता वेदनीय कर्म के उदय के कारण ही खंधक मुनि की जीते जी चमड़ी उतारी गई...गजसुकुमाल महामुनि के मस्तक पर अंगारे डाले गए | स्कंदिलाचार्य के 500 शिष्यों को घाणी में पीला गया...महावीर प्रभु के कान में कीले ठोके गए, इत्यादि / शाता वेदनीय कर्म के उदय से रंक भी राजा बन जाता है / पूर्व भव कर्मग्रंथ (भाग-1)) E 124
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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