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________________ जिस कर्म के उदय से जीव को खूब गाढ़ नींद आती हो, जिस नींद में से जगाना मुश्किल हो, उसे निद्रा निद्रा कहते हैं / लोक व्यवहार में जिसे कुंभकर्ण की नींद कहते हैं / __ बैठे-बैठे या खड़े-खड़े भी जो नींद आ जाती है, उसे प्रचला कहा जाता है। चलते-चलते नींद आती हो, उसे प्रचला-प्रचला कहा जाता है | दिणचिंति अत्थकरणी थीणद्धी अद्धचक्की अद्धबला | महुलित्तखग्ग-धारा लिहणं व दुहा उ वेयणीयं / / 12 / / शब्दार्थ दिणचिंति दिन में सोचा हुआ, अत्थकरणी काम करनेवाली, थीणद्धी-स्त्यानर्द्धि , अद्धचक्की अर्धचक्रवर्ती (वासुदेव), अद्धबला=आधाबल, महुलित्त शहद से लिप्त , खग्गधारा तलवार की धार, लिहणं चाटना, दुहा=दो प्रकार का वेयणीयं वेदनीय / गाथार्थ दिन में सोचा हुआ कार्य रात्रि में नींद में ही कर ले, ऐसी निद्रावस्था को थीणद्धि कहते हैं / इस निद्रा के उदयवाले को अर्धचक्री अर्थात् वासुदेव से आधा बल होता है / मधु (शहद) से लिप्त तलवार की धार को चाटने के समान वेदनीय कर्म है, जो दो प्रकार का है / विवेचन जिस व्यक्ति को थीणद्धि निद्रा का उदय होता है, ऐसा व्यक्ति दिन में सोचा हुआ कार्य रात्रि में निद्रा में ही कर लेता है, काम पूरा करके वापस अपने घर में आकर सो जाता है, फिर भी उसे पता नहीं चलता है कि मैंने यह कार्य किया है। कर्मग्रंथ (भाग-1)= = 12) 122
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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