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________________ 5) व्यवहार सूत्र : इसमें साधु-साध्वी के व्यवहार का विस्तृत वर्णन है / इसके भी रचयिता भद्रबाहु स्वामीजी हैं | इसका प्रमाण 373 श्लोक का है / श्री मलयगिरि म. ने 33625 श्लोक प्रमाण टीका रची है / इस सूत्र के 10 उद्देश हैं | 10 वें उद्देश में आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा व जीत व्यवहार का वर्णन किया गया है। 6) जीत कल्प : आगम व्यवहार का विच्छेद हो जाने से जीत व्यवहार के अनुसार प्रायश्चित्त प्रदान किया जाता है, जो भविष्य में भी चालू रहेगा / जीतकल्प में जीत व्यवहार का विस्तार से वर्णन किया गया है / इसके रचयिता श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण हैं | इसमें 103 गाथाएँ हैं, उन पर 2606 गाथा प्रमाण स्वोपज्ञ भाष्य है / नंदिसूत्र : जिसके अध्ययन, श्रवण व निदिध्यासन से आत्मा समृद्ध बनती है अर्थात् निर्मल ज्ञानादि गुणों की आराधना कर शाश्वत सिद्ध पद प्राप्त कर निजानंद प्राप्त करती है, इस कारण इसे नंदिसूत्र कहते हैं / इस सूत्र में मंगल रूप पाँच ज्ञान का वर्णन है / वर्तमान समय में आचार्यपद-प्रदान के समय मंगल हेतु संपूर्ण नंदिसूत्र पढ़ा जाता है / अन्य योगोद्वहन में लघु नंदिसूत्र पढ़ा जाता है / इस नंदिसूत्र पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं | अनुयोग द्वार : सूत्रार्थ के व्याख्यान को अनुयोग कहा जाता है | आचारांग सूत्र आदि रत्नों की पेटी को खोलने के लिए अनुयोग द्वार चाबी तुल्य है। इसमें उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय का सुंदर व यथार्थ वर्णन किया गया है। बंगले की डिजाइन महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्व तो है-दीवारों और छत का / ये दोनों मजबूत चाहिए / बस , जीवन के उत्थान के लिए बाह्य सौंदर्य महत्त्वपूर्ण नहीं है, परंतु उसके लिए चाहिए, संयम की दीवार और सद्गुरु का छत्र ! ये दो न हों तो जीवन भंगार है। कर्मग्रंथ (भाग-1)) 99
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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