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________________ (इन्द्र तुल्य ऋद्धि वाले) देवों का, तेतीस त्रायस्त्रिशक देव (मंत्री तुल्य देवों का, प्रायस्त्रिंशक देवों को इन्द्र के पूज्यस्थानीय देव भी कहे जाते हैं।).०७ चार लोकपालों (सोम, यम, वरुण, कुबेर) का, परिवार सहित अष्ट अग्रमहिषियों (पमा, शिवा, शची, अजु,अमला, अप्सरा, नवमिका, रोहिणी) का, तीन परिषदों (बाह्य, मध्यम और आभ्यन्तर) का, सप्त सैन्य (गन्धर्व, नाटक, अश्व, गज, रथ, सुभट-पदाति और वृषभ) सप्त सेनापतियों, चार चौरासी सहस्र (तीन लाख छत्तीस हजार) अङ्गरक्षक देवों और अन्य अनेक सौधर्मस्थ देव-देवियों का आधिपत्य करता था। वह सभी में अग्रसर था। स्वामी के समान वह प्रजा का पालन पोषण करता था और गुरु के समान महामान्य था । इन सभी देवों के ऊपर अपने द्वारा नियुक्त देवों द्वारा दिये गये अपने आदेश को प्रदर्शित करने वाला था। वह निरन्तर उच्च ध्वनि वाले नाट्य संगीत, मुखरित वीणा, करताल, त्रुटित, अन्य वाद्य यत्र, मेघ गंभीर रव करने वाला मृदग श्रेष्ठ शब्द करने वाला पटह, इन सभी के मधुर शब्दों को श्रवण करता हुआ आनन्द से रहता है। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में इन्द्र के विराट् वैभव का वर्णन है। इन्द्र के आमोद प्रमोद हेतु नाट्य, संगीत व विविध वाद्य यत्र प्रयुक्त होते थे ।B१०८ मल: इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं श्रोहिणा आभोएमाणे २ विहरइ, तत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्डभरहे माहण कुडग्गामे नगरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालं. धरसगोत्ताए कुच्छिमि गम्भत्ताए वक्तं पासइ, पासित्ता हतु चित्तमाणदिए गदिए परमाणदिए पीइमणे परमसोमणसिए हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरहिकुसुमचंचुमालइयऊससियरोमकूवे वियसियवरकमलनयणवयणे पयलियवरकडगतुडियकेऊर
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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