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गर्भसंहरण
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मूल :
सेवि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणपत्ते रिउव्वेय जउव्वेय सामवेय अथव्वणवेय इतिहासपंचमाणं निघंटुद्वाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउन्हं वेयाणं सारए पारए धारए सडंगवी सद्वितंतविसारण संखाणे सिक्खाणे सिक्खाकप्पे वागणे बंदे निरुत्ते जोइसामयणे अण्णेसु य बहुसु भन्नएस परिव्वायएस नए परिनिट्ठिए यावि भविस्स ॥ ६ ॥
अर्थ- वह बालक बालवय से उन्मुक्त होने पर, समझदार एवं समझ में पक्का होने पर यौवन वय को प्राप्त करेगा । तब वह सांगोपांग तथा रहस्य युक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद का, पाँचवे (वेद) इतिहास का तथा छट्ट निघण्टु ( शब्द कोष ) का ज्ञाता होगा। चारों वेदो के विस्मृत विषय को स्मरण करने वाला, चारों वेदों के रहस्य का पारगामी तथा चारों वेदो का धारक होगा । षडङ्ग ज्ञाता, षष्ठितंत्र विशारद, सांख्य, गणित, आचार शास्त्र, व्याकरण, छन्द व्युत्पत्तिशास्त्र, ज्योतिषचक्र और अन्य अनेकों ब्राह्मण सम्बन्धी एवं परिव्राजकशास्त्रों में परिनिष्णात होगा ।
मूल :
तं ओराला गं तुमे देवाणुपिए! सुमिणा दिट्ठा जाव आरोग्गतुट्ठिदी हाउय मंगलकल्लाणकारगा णं तुमे देवाणुप्पिए । सुमिणा दिट्ठा ॥१०॥
अर्थ - इस कारण हे देवानुप्रिये ! तुमने जो उदार स्वप्न देखे है, वे आरोग्य वर्धक, सतोषप्रदाता, दीर्घायु, मंगल व कल्याण कारक हैं ।
मूल
-!
तणं सा देवानंदा माहणी उसभदत्तस्स माहणस्स यंतिए