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भगवान के पूर्वमव
एक दिन मरीचि का स्वास्थ्य बिगड गया। कोई उसकी सेवा करने वाला था नहीं, सेवा करने वाले के अभाव में क्षुब्ध होकर मरीचि के मानस में ये विचार उठे कि "मैंने अनेकों को उपदेश देकर भगवान् का शिष्य बनाया, पर, आज मैं स्वयं सेवा करने वाले शिष्य से वंचित हूँ, स्वस्थ होने पर मैं स्वयं अपना शिष्य बनाउंगा।"६२ वह स्वस्थ हुआ। राजकुमार कपिल धर्म की जिज्ञासा से उसके पास आया । उमने आहती दीक्षा की प्रेरणा दी। कपिल ने प्रश्न किया-"आप स्वयं आहत धर्म का पालन क्यों नहीं करते ?'
उत्तर में मरीचि ने कहा-“मैं उसे पालन करने में असमर्थ हूँ।" कपिल ने पुन. प्रश्न किया-"क्या आप जिस मार्ग का अनुसरण कर रहे है, उसमें धर्म नही हैं"
इस प्रश्न ने मरीचि के मानम मे आत्मसम्मान का संघर्ष पैदा करदिया और कुछ क्षण रुककर उसने कहा-“यहां पर भी वही है जो जिनधर्म में है।"६३ कपिल मरीचि का शिष्य बना और मिथ्यामत की संस्थापना की, जिसके कारण वह बहु-संसारी बना और कोटाकोटी सागरोपम प्रमाण संसार भ्रमण करना पहा । " कृत-दोषों की आलोचना किए बिना ही उसने आयुपूर्ण किया। (४) ब्रह्मदेवलोक
चौरामी लक्षपूर्व की आयु पूर्ण कर मरीचि का जीव ब्रह्मदेव लोक में दस सागर की स्थिति वाला देव हुआ।१५ (५) कौशिक
वहाँ से च्यवकर कोल्लाकसन्निवेश में अस्सी लाख पूर्व की आयु वाले कौशिक ब्राह्मण के रूप में जन्म लिया। (६) पुष्पमित्र
कौशिक का आयु पूर्ण करके वह स्थूणा नगरी में पुष्पमित्र नामका ब्राह्मण हुआ। उसकी बहत्तर लाख पूर्व की आयु थी। अन्त समय में त्रिदण्डी परिव्राजक बना।