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________________ कालचक २५ से कोमल और उपशान्त रागद्वेष वाले होते है। शरीर से सुन्दर एवं स्वस्थ होते हैं। उस समय मानव की उत्कृष्ट ऊंचाई तीन कोस की और उत्कृष्ट आयु तीनपल्योपम की होती है । ४ तीन दिन के पश्चात् उन्हे क्षुधा लगती हैं। तब वे अरहर की दाल के बराबर मात्रावाला अल्पतम भोजन करते हैं ।२५ दस प्रकार के कल्पवृक्षों से मनोवांछित सुखसाधनों की उपलब्धि होती है। इस युग में मानव सुखी ही नही, परमसुखी तथा सतुष्ट होता है। द्वितीय आरे का नाम 'सुषम' है। यह तीन कोटाकोटी सागरोपम प्रमाण होता है। पूर्वापेक्षया वर्ण, गंध, रस और स्पर्श की उत्कृष्टता का ह्रास हो जाता है। इस आरे के प्रारम्भ मे मानव की आयु दो पल्योपम की होती है और आरे के अन्त के ममय एक पल्योपम की। ऊँचाई भी प्रारम्भ में दो कोस की और अन्तिम समय एक कोस की। पूर्ववत् इनकी भी इच्छाएँ कल्पवृक्षों से पूर्ण होतो हैं : तृतीय आरे का नाम 'सुषम-दुषम' है। यह दो कोटाकोटी सागरोपम प्रमाण है। इस आरे के प्रारम्भ में मानव की ऊंचाई एक कोस की और उतरते आरे पाँच सौ धनुष्य की होती है। आयुष्य आदि में एक पल्योपम का और उतरते आरे करोड पूर्व का होता है। इस आरे के एक पल्योपम का आठवाँ भाग जब शेष रहता है तब प्रथमकुलकर का जन्म होता है और चौरासी लाख पूर्व, तीन वर्ष व साढ़े आठ माह शेष रहने पर प्रथम तीर्थंकर का जन्म होता है। चतुर्थ आरे का नाम 'दुषम-सुषम' है। यह बयालीस हजार वर्ष न्यून एक कोटाकोटी सागरोपम का होता है। प्रारम्भ में मानव की ऊँचाई पाँच सौ धनुष्य की और उतरते आरे सात हाथ की होती है। प्रारम्भ में करोड पूर्व की आयु और अन्त में सौ वर्ष से कुछ अधिक उम्र होती है। इस आरे में तेवीस तीर्थकर, ग्यारह चक्रवर्ती, नौ वासुदेव तथा बलदेव होते हैं ।२७ पंचम आरे का नाम 'दुषम' है। यह इक्कीस हजार वर्ष का होता है । इसमें मानव की आयु प्रारम्भ में एक सौ से कुछ अधिक वर्षों की होती है और
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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