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पूर्व पीठिका
मल:
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भयवं महावीरे जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अहमे पक्खे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स छहीपक्खेणं महाविजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरीयाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमट्ठियाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणद्धभरहे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए विइक्कंताए सुसमाए समाए विइक्कंताए दुस्समसुसमाए समाए बहुविइक्कंताए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसवाससहस्सेहिं ऊणियाए पंचहत्तरीए वासेहिं अद्धनवमेहिं य मासेहिं सेसेहिं इक्कवीसाए तित्थयरेहिं इक्खागकुलसमुप्पन्नेहिं कासवगुत्त हिं दोहि य हरिवंसकुलसमुप्पन्नेहिं गोतमसगुत्तहिं तेवीसाए तित्थयरेहिं वीइक्कतेहिं समणे भगवं महावीरे चरिमे तित्थकरे पुव्वतित्थकरनिद्दिठे माहणकुण्डग्गामे नगरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खतेणं जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते ॥२॥
अर्थ-उस काल और उस समय श्रमण भगवान् महावीर ग्रीष्मकाल के चतुर्थमास और आठवें पक्ष अर्थात् आषाढ शुक्ल छ8 के दिन महाविजय पुष्पोत्तरप्रवर पुण्डरीक महाविमान से बीस सागरोपम की आयु, भव और स्थिति का क्षय करने के पश्चात् च्यवकर इसी जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध भरत में, इसी अवसर्पिणी काल में, जब सुषमासुषम, सुषम, सुषम-दुषम, नामक आरे