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च्यवन-नारक एवं देवता के आयुःक्षय को व्यवस्था करनेवाला अधिकारी।
'च्यवन' कहा जाता है, अर्थात दत्ति-एक बार में संलग्न व अक्षतधारा देव एवं नारक को 'मृत्यु ।'
रूप से दिया जाने वाला चाउलोदक-चावल का पोवन ।
आहार पानी। चाहे एक बार च्युत होना - देव एवं नरक गति में मृत्यु
में एक कण भर आहार दिया प्राप्त करना।
हो, या एक बूद भर जल ! चौदह पूर्व-जैन पंरपरा के मूल अंग
वह एक 'दत्ति' ही कहलाती है। नगर गुप्तिक-नगर की व्यवस्था का
र बारह है। बारहवें अंग दृष्टि
जिम्मेदार अधिकारी।कोटवाल वाद (जो वर्तमान में विच्छिन्न
आदि। है) में चौदह पूर्व आते हैं, जिनका ज्ञान अत्यंत विस्तृत
नाम कर्म-देखिए 'कर्म'। माना जाता है।
पर्याप्ति-शरीर, इन्द्रिय आदि की संपूर्ण चोवह पूर्वी (पूर्व धर)-जिसे संपूर्ण चौदह
रचना। पूर्व का ज्ञान प्राप्त हो वह,
पल्योपम--एक विशेष प्रकार का समय सूचक चौदहपूर्वी या चतुर्दश पूर्वधर
माप। अंकों द्वारा जो संख्या मुनि कहलाता है।
प्रकट न की जा सके उसे छट्ठभक्त-लगातार छः वक्त तक आहार
उपमा द्वारा प्रकट करना होता
है। पल्प- एक विशेष प्रकार आदि का त्याग करना। दो दिन का उपवास ।
का माप है, उसकी उपमा से
काल गणना करना-पल्योपम जबोदक-जो का धोवन ।
कहलाता है, अर्थात् संख्यातीत जातिस्मरण ज्ञान-अपने पूर्व जन्म का
वर्ष । असंख्य काल। मान । जाति-स्मृति। पादपोपगमन-अनशन तप की विशेष ज्योतिषिक देव-सूर्य, चन्द्र, प्रह, नक्षत्र,
अवस्था । अनशन ग्रहण करके तारा आदि ज्योतिषिक देव
मृत्यु पर्यन्त वृक्ष (पादप) की कहलाते हैं।
भांति शरीर को स्थिर करके तिलोदक-तिल आदि का धोया हुआ
समाधिस्थ रहना-पादपोपगमन पानी, धोवन ।
संथारा कहलाता है। तुषावक-तुष अर्थात् छिलका, दाल आदि पान-पीने का सादा पानी।
छिलके वाली वस्तु का धोवन। पारिष्ठापनिका समिति-देखिए 'समिति'। खंडनायक-प्रजा में न्याय तथा व्यवस्था पुरुषावानीय-मनुष्यों में आदरणीय श्रेष्ठ । के लिए दण्ड आदि की
भगवानपाश्र्वनाथका विशेषण।