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८४. धम्माणं कासवो मुंहें।
-उत्तरा०म० २५, गा• १६ ८५. (क) आवश्यक नियुक्ति० मलय० वृत्ति पृ० २३०१ (ख) त्रिषष्टि० ११३१६५४ १० ८६ ८६. (क) आवश्यक मलय० वृ० पृ. २२६ (ख) त्रिषष्टि० १३१६५१
(ग) कल्पलता, समयसुन्दर पृ० २०७ (घ) त्रिषष्टि ० १।४।७३०-७४६ ८७. मावश्यक चूर्णि० पृ० २०६ ५६. मावश्यक मलय० पृ० २३१११ ८६. (क) बावश्यक मलय० पृ० २३१३१ (ख) त्रिषष्टि० १।४।८१८ से ८२६ ६०. (क) आवश्यक चूणि० २०६।२१० (ख) आवश्यक मलयगिरि वृत्ति ६१. आवश्यक नियुक्ति० गा० ३४८ ६२. आवश्यक चूणि पृ० २१० ६३. पढमं दिट्ठोजुद्ध', वायाजुद्ध तहेब बाहाहिं । ___ मुट्ठीहि अ दंडेहि अ सव्वत्यवि जिप्पए भरहो ।
-आवश्यक भाष्य गा०३२ ६४. (क) त्रिषष्टि० पर्व १, सर्ग ४-५ (ख) आदि पुराण (जिनसेन) पर्व ३४-३६
(ग) कथाकोष प्रकरण (जिनेश्वर सूरि) कथा : ६५. (क) आवश्यक मलय० पृ० २३२ (ख) आदि पुराण, पर्व ३६ ६६. (क) आवश्यक मलय० वृत्ति (ख) त्रिषष्टि० १३५१७६५ से ७६८
(ग) आवश्यक चूणि० पृ० २१०-२११ ६५. (क) आवश्यक नियुक्ति गा० ४३६ (ख) आवश्यक मलय० वृत्ति पृ० २४६
(ग) आवश्यक चणि पृ० २२७ १८. भगवान ऋषभदेव के सम्बन्ध मे प्राय. वैदिक ग्रन्थ एक स्वर से श्रद्धाभिव्यञ्जना करते हैं। ऋग् वेद (२-३३-१५) में रुद्र सूक्त मे एक ऋचा है
__ "एव बम्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृणीषे न हंसी।" हे वृषभ ! ऐसी कृपा करो कि हम कभी नष्ट न हों।।
इसके अलावा नाभिपुत्र ऋषभ और ऋषभ पुत्र भरत चक्री का ताज्यवाह्मण (१४-२-५) शत० मा० (५, २-५-१७) श्रीमद्भागवत (स्कंध २०) तथा उत्तर कालीन मार्कण्डेय पुराण (म० ५०) कूर्म पु० (म० ४१) अग्नि पु० (१०) वायु पु० (३३) गरुड पुराण (१) ब्रह्माण्ड पु० (१४) विष्णु पु० (२-१) स्कंद पु० (कुमार खण्ड ३७) आदि अनेकों पुराणो मे विस्तार के साथ उनकी चर्चा मिलती है।
पुरातत्त्व विभाग के अनुसन्धानों ने तो यह प्रायः सिद्ध कर दिया है कि ऋषभदेव ही भारतीय सभ्यता और योग मार्ग के आद्य प्रवर्तक थे। इसके लिए विशेष जिज्ञासु लेखक का ऋषभ देव, एक परिशीलन ग्रन्थ देखें।