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समाचारी : भिक्षाचरी कल्प: आठ सूक्ष्म
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पुण एवं जाणेज्जा - विगओअए से काए छिन्नसिणेहे एवं से कप्पर असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारितए || २६४ || अर्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! किस दृष्टि से आप ऐसा कहते हैं ?
उत्तर - शरीर में सात भाग स्नेहायतन बताये गये हैं अर्थात् शरीर में सात भाग ऐसे हैं जहाँ पर पानी टिक सकता है, जैसे- (१) दोनों हाथ, (२) दोनों हाथों की रेखाएं, (३) नाखून, (४) नाखून के अग्रभाग, (५) दोनों भौंहें, (६) नीचे का ओष्ठ अर्थात् ढाढ़ी, (७) ऊपर का ओष्ट अर्थात् सूछें ।
जब निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को ऐसा ज्ञात हो कि अब मेरे शरीर पानी का आप बिल्कुल नही रहा है तो उनको अशन, पान, खादिम और स्वादिम का आहार करना कल्लता है ।
आठसूक्ष्म
मूल
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वासावासं पज्जोसवियाणं इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाई अट्ठ सुहुमाई, जाई छउमत्येणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं जाणियव्वाइं पासियव्वाइं पडिले हियव्वाइं भवति, तं० पाणसुहुमं पणगसुहुमं बीयसुहुमं, हरियसुहुमं पुप्फसुमं अंडसुहुमं लेणसुहुमं सिणेहसहुमं ।। २६५।।
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अर्थ - यहाँ (निर्ग्रन्थ शासन में ) वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ और निग्रॅन्थिनियों को ये आठ सूक्ष्म जानने योग्य हैं । प्रत्येक छद्मस्थ निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थिनी को पुनः पुनः सम्यक् प्रकार से आठ सूक्ष्म जानने ( आगम से ) योग्य हैं, देखने (चक्षु से ) योग्य हैं - और सावधानी पूर्वक प्रतिलेखना करने योग्य हैं । जैसे कि - (१) प्राणसूक्ष्म, (२) पनक सूक्ष्म, (३) बीज सूक्ष्म, (४) हरित सूक्ष्म, (५) पुष्प सूक्ष्म, (६) अण्डसूक्ष्म (७) लयन सूक्ष्म, और (८) स्नेह सूक्ष्म ।