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________________ अर्थ-वर्षावास में रहे हए षष्ठभक्त करने वाले भिक्षक को तीन प्रकार का पानी पीना कल्पता है जैसे कि-तिलोदक, तुषोदक और जवोदक । मल: वासावासं पजोसवियाणं अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणयाई पडिगाहित्तए, तं जहा-आयामए सोवीरए सुद्धवियडे ॥२४॥ अर्थ-वर्षावास रहे हुए अष्टम भक्त करने वाले भिक्षुक को तीन पानी लेना कल्पता हैं । जैसे - आयाम, सौवीर (कांजी) और शुद्धविकट (उष्णोदक)। मूल : वासावासं पज्जोसवियाणं विकिट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणोदए वियडे पडिगाहेत्तए, से वि य णं असित्थे णो वि य णं ससित्थे ॥२४॥ __ अर्थ-वर्षावास में अवस्थित विकृष्ट भक्त करने वाले भिक्षुक को एक उष्णबिकट (शुद्ध उष्णोदक) पानी लेना कल्पता है, वह भी अन्नकण रहित, अन्नकण युक्त नहीं। मूल : वासावासं पजोसवियाणं भत्तपडियाइक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणोदए पडिगाहित्तए, से वि य णं असित्थे नो चेव णं ससित्थे, से वि य णं परिपूते नो चेव णं अपरिपूए, से वि य णं परिमिए नो चेव णं अपरिमिए से वि य णं बहुसंपण्णे नो चेव णं अबहुसंपण्णे ॥२५०॥ अर्थ-वर्षावास रहे हुए भक्त प्रत्याख्यानी भिक्षुक को एक उष्ण बिकट
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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