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अर्हत् अरिष्टनेमि: शिष्य-संपदा
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अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खर जाव होत्था । पण्णरस सया ओहिनाणीणं, पन्नरस सया केवलनाणीणं, पन्नरस सया वेव्वियाणं, दस या विउलमतीणं, अठ सया वाईणं, सोलस सया अणुत्तरोववाइयाणं, पन्नरससमणसया सिद्धा, तीसं अज्जियासयाई सिद्धाई ॥ १६६॥
अर्थ - अर्हत् अरिष्टनेमि के तीर्थ में अठारह गण, और अठारह गणधर थे । अर्हत् अरिष्टनेमि के समुदाय में वरदत्त आदि अठारह हजार श्रमणों की उत्कृष्ट श्रमण संपदा थी । अर्हत् अरिष्टनेमि के समुदाय में आर्य-यक्षिणी आदि चालीस हजार आर्यिकाओं की उत्कृष्ट आर्यिका सम्पदा थी । अर्हत् अष्टमि के समुदाय में 'नन्द' आदि एक लाख उनहत्तर हजार श्रमणोपासकों की उत्कृष्ट श्रमणोपासक संपदा थी । अर्हत् अरिष्टनेमि के समुदाय के महासुव्रता आदि तीन लाख छत्तीस हजार श्रमणोपासिकाओं की उत्कृष्ट श्रमणसंपदा थी । अर्हन् अरिष्टनेमि के संघ में जिन नहीं, किन्तु जिन के समान, तथा सभी अक्षरों के संयोग को यथार्थ जानने वाले ऐसे चारसौ चौदह पूर्वधारियों की सम्पदा थी ।
इसी प्रकार पन्द्रहसो अवधिज्ञानियों को, पन्द्रहसौ केवलज्ञानियों की, पन्द्रह सौ वैयिलब्धि धारियों की, एक हजार विपुलमति मनःपर्यवज्ञानियों की. आठसौ वादियों की, और सौलहसौ अनुत्तरोपपातिकों की उत्कृष्ट सपदा थी ।
उनके श्रमण समुदाय में पन्द्रहसौ श्रमण सिद्ध हुए, और तीन हजार श्रमणियाँ सिद्ध हुईं । यह उनके सिद्धों की सम्पदा थी ।
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मूल :
अरहओ णं अरिटूटनेमिस्स दुविहा अंतकडभूमी होत्था, तं जहा - जुगंतकडभूमी य परियायंतकडभूमी य जाव अटूटमाओ पुरिसज्जुगाओ जुगंतकडभूमी दुवासपरियार अंतमकासी ॥ १६७॥
अर्थ - अर्हत् अरिष्टनेमि के समय में अन्तकृतों की अर्थात् निर्वाण प्राप्त