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२२४ दस सया केवलनाणीणं, एक्कारस सया वेउब्वियाणं, अद्धहमसया विउलमईणं, छस्सया वाईणं, छ सया रिउमईणं, बारस सया अणुतरोववाइयाणं संपया होत्था॥१५७॥
अर्थ-पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के संघ में अज्जदिण्ण (आर्यदत्त) आदि सोलह हजार साधुओं की उत्कृष्ट श्रमण-सम्पदा थी। पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के समुदाय में पुष्पचूला आदि अड़तीस हजार आयिकाओं की उत्कृष्ट आयिका-सम्पदा थी।
पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के संघ में सुनन्द आदि एक लाख चौंसठ हजार श्रमणोपासकों की उत्कृष्ट श्रमणोपासक-संपदा थी। पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के समुदाय में सुनन्दा आदि तीन लाख और सत्तावीस हजार श्रमणोपासिकाओं की उत्कृष्ट श्रमणोपासिका-सम्पदा थी।
पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के समुदाय में साढ़े तीन सौ जिन नही, किन्तु जिनके सदृश सर्वाक्षर संयोगों को जानने वाले यावत् चोदह-पूर्वधारियों की सम्पदा थी । पुरुषादानीय अर्हन पार्श्व के समुदाय में चौदह सौ अवधिज्ञानियों की सम्पदा थो। पुरुषादानीय अर्हत पाव के समुदाय में एक हजार केवलज्ञानियों की सम्पदा थी। ग्यारहमी वैक्रिय लब्धिवालों की तथा छह सौ ऋजुमति ज्ञान वालों की सम्पदा थी। भगवान पार्श्वनाथ के एक हजार श्रमण सिद्ध हुए, तथा उनकी दो हजार आयिकाएं सिद्ध हुई। पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के संघ में साढ़े सात सौ विपुलमतियों की (विपुलमति मनःपर्यव ज्ञान वालों की), छह सौ वादियों की और बारह सौ अनुत्तरोपपातिकों की-अर्थात् अनुत्तर विमान में जाने वालों की संपदा थी।
मल :
पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स दुविहा अंतकडभूमी होत्था, तं जहा-जयतकहभूमी य, परियायंतकडभूमी य।