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पुण्यावानीय महंत पानाथ : जन्म : नाग का मार
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मल:
तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जे से हेमंताणं दोच्चे मासे तच्चे पक्खे पोसबहुले तस्स णं पोसबहुलस्स दसमीपक्खेणं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाण य राईदियाणं विइक्वताणं पुबरत्तावरत्तकालसमयंसि विसाहाहि नक्खत्तणं जोगमुवागएणं अरोगा अरोगं पयाया, जम्मणं सव्वं पासाभिलावेण भाणियव्वं जाव तं होउ णं कुमारे पासे नामेणं ॥१५॥
___ अर्थ-उस काल उस समय हेमन्त ऋतु का द्वितीय मास, तृतीय पक्ष, अर्थात् पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन, नौ माह पूर्ण होने पर और साढे सात रात-दिन व्यतीत होने पर रात्रि का पूर्व भाग समाप्त होने जा रहा था और पिछला भाग प्रारम्भ होने जा रहा था, उस सन्धि-वेला में, अर्थात् मध्यरात्रि में विशाखा नक्षत्र का योग होते ही, आरोग्य वाली माता ने आरोग्य पूर्वक पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व नामक पुत्र को जन्म दिया।
जिम रात्रि को पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व ने जन्म ग्रहण किया, उस रात्रि को बहुत से देव और देवियाँ जन्म कल्याणक मनाने के लिए आई, जिससे वह रात्रि प्रकाशमान हो गई और देव देवियों के वार्तालाप से शब्दायमान भी हो गई।
स्वप्न व जन्म सम्बन्धी अन्य सारा वृत्तान्त भगवान महावीर के वर्णन में आए हुए वृत्तान्त के समान यहां भी समझना चाहिए। विशेष भगवान् महावीर के स्थान पर भगवान पार्श्व का नाम लेना चाहिए। यावत् माता-पिता ने कुमार का नाम 'पार्श्व' रखा।
विवेचन-राजकुमार पार्श्वनाथ बड़े होते हैं । युवावस्था आने पर उनका पाणिग्रहण कुशलस्थ (कन्नौज) के राजा प्रसेन जित् की पुत्री परम सुन्दरी प्रभावती के साथ हुआ।